अपने गांव का नाम ‘ गंदा’ होने पर हरियाणा की छात्रा ने लिखी पीएम को चिठ्ठी
यूं बात छोटी सी है, लेकिन बहुत बड़ी भी है। इस उद्धरण को ताकत देने वाली है कि ‘नाम में बहुत कुछ रखा है।‘ केन्द्र सरकार ने हाल में हरियाणा के दो गांवों के नाम बदलने को मंजूरी दी है। ये गांव राज्य के फतेहाबाद जिले के हैं। इन गांवों के लोग अपने गांव के अभद्र नामों के कारण आत्मग्लानि में जी रहे थे। उन्होने राज्य सरकार से दरख्वास्त की कि उनके गांवों के नाम बदल दिए जाएं। इनमे से एक का नाम है ‘गंदा’ और दूसरे का है ‘किन्नर।‘ अब दोनो के नाम बदलकर अजीत नगर और गैबी नगर करने पर विचार किया जा रहा है। मामला यूं उठा कि ‘गंदा’ गांव की एक छात्रा हरप्रीत कौर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिखकर कहा कि उसे अपने गांव के नाम के कारण शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। इसलिए गांव का नाम बदला जाए। शुरू में इसे किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन हरप्रीत चिट्ठियां लिखती रही। धीरे- धीरे बाकी गांववासी भी इस मुहिम में शामिल हो गए। सरकार पर दबाव बढ़ता गया। दूसरे गांव का नाम बदलने की मांग उठी। अतंत: पीएमअो से इसकी मंजूरी मिल गई।
शर्मसार कर देने वाले हैं कई गांवों के नाम
छोटी लड़ाई की यह बड़ी जीत इस मायने में है कि देश में कई गांवो के नाम ऐसे हैं, जो ‘ऐसे’ क्यों हैं, इसके पीछे कोई लाॅजिक नहीं है। अगर ये नाम अश्लील, अभद्र या अनुच्चारणीय हैं तो ये नाम आखिर रखे किसने और क्यों रखे? क्या उसका मकसद वहां के रहवासियों का मजाक उड़ाना था या फिर उन्हें समाज में नीचा दिखाना था? गांवों के नामकरण का यह शास्त्र काफी उलझा हुआ है। इसका जवाब उतना ही कठिन है जितना यह जानना कि कोई गांव कब, कहां और कैसे बसा ? उसे किसने और क्यों बसाया ? सरकारी परिभाषा के मुताबिक कोई भी गांव पहले मजरे या टोले के रूप में बसता है। धीरे धीरे वह गांव का रूप लेता है। तब जाकर वह सरकारी रिकाॅर्ड में राजस्व ग्राम का दर्जा पाता है। यह एक लंबी प्रक्रिया है। लेकिन जो भी गांव बसा, उसका नाम किसने और क्यों रखा, इसका जवाब लगभग असंभव है। मसलन गांव का नाम ‘गंदा’ रखने के पीछे क्या सोच रही होगी? क्या उस गांव के लोग गंदे रहते थे या िफर वह किसी गंदी जगह बसा था? या फिर ‘कुछ भी’ रख देने की मानसिकता के चलते यह नाम रखा गया? जो नाम पड़ गया सो पड़ गया, लेकिन उससे शर्मसारी का भाव पैदा होने के लिए गांव को एक हरप्रीत का इंतजार करना पड़ा।
504 गांवों के नाम में चांद है तो सूरज को केवल 206 गांवों के नाम में ही जगह मिली
गांव के नामकरण के निश्चित कारक क्या हैं, यह कहना मुश्किल है। ये नाम प्रकृति, भौगोलिक स्थिति, जातीय अस्मिता, व्यक्ति विशेष, देवी- देवता, प्राणी, लोगों की जीवन शैली, दंतकथा, ऐतिहासिक घटना अथवा सामाजिक रिश्तों पर आधारित भी हो सकते हैं। गांव और शहर में बुनियादी फर्क यही है कि शहर बसाए जाते हैं, गांव बस जाते हैं। कई बार अश्लीलता को स्पर्श करने वाले ये नाम अंग्रेजी में ‘फनी नेम’ कहलाते हैं। मसलन मप्र के बालाघाट जिले में एक गांव है छुतिया ( इसे अंग्रेजी के हिसाब से कुछ और भी पढ़ सकते हैं। हिमाचल के किन्नौर िजले में एक गांव है ‘पू’। तेलंगाना के आदिलाबाद जिले के एक गांव का नाम है ‘भैंसा’, झारखंड के हजारीबाग जिले में एक गांव है ‘दारू’। यूपी और गुजरात में एक समानता है। वहां के क्रमश: बांदा और सांबरकाठा जिले के एक- एक गांव का नाम है ‘गधा’। पंजाब के जालंधर जिले में एक रेलवे स्टेशन है ‘काला बकरा’ छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में एक कस्बा है ‘लैलूंगा।‘
अंग्रेजी अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने 2011 की जनगणना के बाद एक दिलचस्प सर्वे किया था। उन्होने गांवों के नामकरण के पीछे एक सिलसिला खोजने की कोशिश की थी। इस सर्वे के मुताबिक भारत में कुल 6 लाख 77 हजार 459 गांव हैं। इनमें से 3616 के नाम भगवान राम और 3309 के नाम कृष्ण के नाम पर हैं। मुगल सम्राट अकबर के नाम पर 234 तथा बाबर के नाम पर 63 व शाहजहां के नाम से 51 गांव हैं। गांवों के नामकरण मामले में चांद, सूरज पर भारी है। उदाहरण के लिए देश में 504 गांवों के नाम में चांद है तो सूरज को केवल 206 गांवों के नाम में ही जगह मिली है।
अब नाम बदलने की जरूरत
यहां मुख्य मुद्दा ‘गंदे’ नामों का है। उन्हे कैसे बदला जाए और क्या नाम बदलने से वहां के रहवासियों की तासीर बदल जाएगी? गांव ही क्यों कई व्यक्तियों के नाम भी इतने अजीब होते हैं कि मन में सवाल उठता है कि इनका यह नाम क्यों है और क्यों यह शख्स इतना गंदा या अभद्र नाम जिंदगी भर ढोता रहा है? हालांकि कुछ लोग अपने अजीब नामों में ही अपनी पहचान खोज कर खुश रहते हैं। फिर भी सुंदर और सार्थक नामों का अपना महत्व है। भले ही वास्तविकता से उनका कोई लेना- देना न हो। अच्छा और सुंदर नाम किसी गांव या शहर को एक अलग तरह का आत्मविश्वास और अस्मिता प्रदान करता है। और यह बात कही नहीं जाती, खुद- ब- खुद कम्युनिकेट होती है। गांव भी चाहता है कि उसे ‘नत्थू खैरा’ न मान लिया जाए। क्योंकि व्यक्ति की तरह गांव की भी एक शख्सियत और सोच होती है। नाम अगर उसी शख्सियत और सोच को रूपायित करे तो वह सार्थक होता है। छात्रा हरप्रीत की सोणी पहल इसी पीड़ा को मुखर करती है। उसका गांव भौतिक रूप से भले साफ- सुथरा हो, लेकिन ‘गंदा’ नाम उसे गंदे रूप में ही कम्युनिकेट करता है। क्योंकि ‘गंदा’ शब्द में ‘गंदगी’ का भाव ही निहित है। चाहे वह अस्वच्छता हो, चारित्रिक हो, सामाजिक हो या राजनीतिक हो। ‘गंदा’ को ‘साफ’ तो नहीं कहा जा सकता। इसीलिए नाम में बहुत कुछ रखा है, भले ही वह एक संज्ञा हो।
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