मैं प्रीति पाण्डेय अपने स्कूल के दिनों का अनुभव एक भोजपुरी गीत के माध्यम से आप सभी के समक्ष ब्यक्त कर रही हूं । मैं जहाँ पढ़ाई कर रही थी उस स्कूल के प्रिंसिपल मेरे मौसा जी थे , जो बहुत गुस्से वाले थे । बच्चे तो बच्चे स्कूल के टीचर और बच्चों के गार्जियन भी उनसे डरते थे । पर उनके अनुशासन के सभी कायल भी थे । जिस समय उन्होंने ने विद्यालय का कार्यभार संभाला उसके कुछ ही दिन बाद बच्चों की इतनी संख्या बढ़ी की लगातार 2,3 मंथ डेक्स ब्रेंच बनवाते रहे कई कमरो का निर्माण भी करवाना पड़ा 1900 बालिकाओं की संख्या हो गई । यह एक सरकारी विद्यालय था और यहाँ के चपरासी के पास भी उतना ही अधिकार था जितना कि एक शिक्षक के पास होता था।
यह गीत मैं पढ़ाई के दौरान ही लिखी थी ।
हमरा गाँव गवइंया बड़ा निक लागेला।।
हमरा जनता में पढ़इंया बड़ा निक लगेगा।
प्रिंसिपल साहब रउरा के का हम बखानी
सचहूँ रउरा ज्वालारूप बानी
एइसन अनुसाशन देवईया हमरा बड़ा निक लगेगा।
हमरा गाँव गवइंया बड़ा निक लागेला।
हमरा जनता में पढ़इंया बड़ा निक लगेगा।
समय से आई त आगे बईठि पाई
ना त पिछहूँ के ढकलईया बड़ा निक लगेगा।
कबो जे देर से आई त , गेट पर गर्दनीयावल जाइ ।
हमरा पहलवान चाचा के अंगड़इया बड़ा निक लागेला ।
हमरा गाँव गवइंया बड़ा निक लागेला।
हमरा जनता में पढ़इंया बड़ा निक लगेगा।।
प्रिंसिपल सर का नाम ज्वाला था और गेट पर तैनात रहने वाले चपरासी को सभी पहलवान कहते है जो अपने समय मे पहलवान हुआ करते थे । उनका नाम हम लोगों को आज तक नही पता है।
नोट – यह संस्मरण हमें प्रीति पाण्डेय ने लिखकर भेजा है। यदि आपके पास भी बचपन के स्कूली किस्से , कहानियां और यादगार स्मृति हो तो आप भी हमें बेझिझक हमारे पते +91 94510 63677 ( whatsapp) पर भेज सकते हैं।
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