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बचपन के स्कूल को दी अनूठी गुरदक्षिणा 

बचपन के स्कूल को दी अनूठी गुरदक्षिणा

प्रतापगढ के इस प्रधान के प्रयासों की चारो तरफ हो रही है सराहना

उत्तर प्रदेश के ग्राम सहाब पुर विकास खंड कुंडा प्रतापगढ़ के प्रधान प्रभाकर सिंह आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। प्रतापगढ़ के प्रधान प्रभाकर सिंह के प्रयासों के कारण शहाबपुर का प्राथमिक विद्द्यालय अब कान्वेंट स्कूलों को मात दे रहा है। इसी स्कूल मे पढ़े प्रभाकर बताते हैं कि वह कभी यहां महुए के पेड़ के नीचे बैठ के पढ़ाई किया करते थे। अपने उसी स्कूल को संवारने का संकल्प उन्होंने बडे होते ही ले लिया था। गुरदक्षिणा में उन्होंने अपने बचपन के विद्यालय की तस्वीर ही बदल दी। आज सहाब पुर विकास खंड का यह स्कूल जिलें ही नहीं देश भर के कान्वेंट स्कूलों से टक्कर लेने को तैयार हैं। स्कूल को संवारने वाले प्रधान प्रभाकर के प्रयासों को सभी ने सराहा यहां तक कि जिलाधिकारी ने जिले के लिए प्रधान के प्रयासों को माडल माना और उन्हें जिलें के सरकारी स्कूलों के कायाकल्प में जिम्मेदारी भी दी।
बदल गई सरकारी स्कूल की तस्वीर


आज स्कूल को देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि यह सरकारी स्कूल है। बच्चों अध्यापक व स्कूल का कायाकल्प उसे प्राइवेट स्कूलों से भी आगे ले जाते हैं। आज चमचमाती फर्श, दीवारों पर शानदार पेंटिंग, अत्याधुनिक लाइब्रेरी, कंप्यूटर लैब, साफ-सुथरे शौचालय और ढेर सारे बच्चे यहां बदलाव की कहानी कह रहे हैं। यह सब संभव हो सका है ग्राम प्रधान प्रभाकर सिंह की कोशिशों से। उन्होंने न सिर्फ बिल्डिंग संवारी बल्कि जरूरत पड़ने पर बच्चों को पढ़ाया भी। आज खूबसूरत टायल्स, पंखे, पार्क और साफ सुथरे शौचालय देख लोग यकीन नहीं कर पाते कि यह सरकारी प्राइमरी स्कूल है।
प्रभाकर कहते हैं कि उन्होंने भी इस स्कूल से पढाई की है इसलिए जो भी बन पडेगा वो करेंगे। बच्चों के खेलकूद और उनके बहुमुखी विकास के लिए प्रभाकर के प्रयास आज रंग ला रहे हैं। बदलाव अब साफ साफ दिखता है।
प्रभाकर स्कूल समय में हमेशा मिलते हैं। अगर वह एक दिन भी स्कूल न जायें तो बेचैन रहते हैं। वह स्कूल के अनुसार ही अपना दैनिक कार्यक्रम तय करते हैं।
इस बदलाव का ही असर है कि जहां 15 अगस्त 2016 में इस विद्यालय में 12 बच्चे थे, वहीं आज यह संख्या 250 है। प्रभाकर बताते हैं, “2016 में उपचुनाव के बाद जब मैं ग्राम प्रधान बना तो सबसे पहले शिक्षा व्यवस्था सुधारने के बारे में सोचा और मीटिंग बुलाई। उसमें आंगनबाड़ी, आशा कार्यकत्री, सचिव, स्कूल के टीचरों से बात की। सबके साथ मिलकर कार्ययोजना बनाई। हमने स्कूल में सबसे पहले शौचालय का निर्माण करवाया। दरअसल बड़ी संख्या में छात्राएं सिर्फ टायलेट न होने की वजह से नहीं आती थीं। स्कूल में दरवाजे, खिड़कियां भी लगवाई। इतना बजट नहीं आता है कि हम मजदूर लगा पाते इसलिए मैंने खुद से श्रमदान शुरू किया। इसे देखकर गाँव के दूसरे लोग भी आगे आए हैं।” “शुरू में स्कूल की स्थिति बहुत खराब थी, बहुत कम बच्चे आते थे लेकिन आज आपसी सहयोग से स्कूल की तस्वीर बदली है। यहां के प्रधानाचार्य अनिल पांडे जी बताते हैं कि प्रधान जी के सहयोग से आज हमारे विद्यालय की पहचान जिले ही नहीं पूरे प्रदेश में हो गई है।
अध्यापक की कमी हुई तो खुद लेने लगे क्लास


बच्चों को पढ़ाने के लिए पर्याप्त अध्यापक न होने पर ग्राम प्रधान खुद बच्चों को पढ़ाते हैं। वो बताते हैं, “स्कूल में पर्याप्त टीचर नहीं हैं, लेकिन हम इसकी वजह से बच्चों की पढ़ाई का नुकसान तो नहीं करा सकते, इसलिए मैंने खुद से पढ़ाना शुरू किया है। अभी हमारे यहां पांच टीचर हैं लेकिन 250 बच्चों को पढ़ाना मुश्किल हो जाता था।” मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रतापगढ़ की प्रभारी मंत्री स्वाती सिंह तक ने प्रभाकर के काम को सराहा है।
विद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष अखिलेश यादव बताते हैं कि “हमारे यहां के जब ग्राम प्रधान ऐसे हैं तो हम लोग तो सहयोग करेंगे ही, उनका प्रयास ही है कि कभी स्कूल में नाममात्र के बच्चे थे आज 250 हो गए हैं।
समय-समय पर हमारे यहां मीटिंग भी होती है, जो भी कमी होती है मीटिंग में उस पर चर्चा होती है।” सरकारी बजट इतना नहीं मिलता है कि स्कूल का कायाकल्प हो पाता, ग्राम प्रधान ने अपने पास से और लोगों के सहयोग से विद्यालय पर अब तक करीब आठ लाख रुपए खर्च किए हैं। प्रभाकर बताते हैं, “आज स्कूल ऐसा बन गया है कि जिले के अधिकारी मुझे दूसरे स्कूलों में बुलाते हैं कि मैं दूसरे ग्राम प्रधान और अध्यापकों को बताऊं कि कैसे आप भी अपने स्कूल का कायाकल्प कर सकते हैं।” बडो द्वारा दी गई जिम्मेदारी ही मुझे ये सब करने के लिए प्रेरित करती है। आज भी जिले में कोई भी मंत्री या अफसर आता है तो हमारा स्कूल देखे बिना नहीं जाता।

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