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कूड़े से बनी फूलों की माला, राकेश का जादू सिर चढ़कर बोला 

कूड़े से बनी फूलों की माला, राकेश का जादू सिर चढ़कर बोला

जादू…। नाम सुनते ही रोमांच से सिहर उठता है हर कोई। क्‍या कहा राकेश भाई का जादू है। जरूर कुछ नया है भाई। जी हां कानपुर में एक ऑटो में बैठे शख्‍स ने जब यह बात कही तो लगा राकेश भाई का जादू लखनऊ अमेठी ही नहीं कानपुर सहित पूरे देश में सिर चढकर बोल रहा है। राकेश श्रीवास्‍तव के जादू के दीवाने इस व्‍यक्ति ने जो बताया वो भी कम दिलचस्‍प नहीं था। कानपुर में एक शो के दौरान तत्‍कालीन डीएम मुकेश मेश्राम से कूडा जलवा कर वहीं फूलों की माला बनवा दी। लडकी का धड गायब कर दिया। क्‍या अलीगढ तो इलाहाबाद सब जगह बस राकेश के जादू के चर्चे ही हैं।

जब मंत्री ने अपनी सारी चल अचल सम्‍पत्ति दान में दे दी
क्या आप यकीन करेंगे कि अगर किसी राज्यमंत्री से एक कार्यक्रम के दौरान जादूगर के करतबों के बारे में लिखित में पूछा जाए और वह उसकी प्रशंसा में कुछ शब्द लिख दें लेकिन जब उन्हें पढ़ा जाए तो पता चले कि मंत्री ने अपनी सारी चल-अचल सम्पत्ति जादूगर के हवाले कर दी है। कागज में लिखे शब्द कैसे बदल गए, यह सोचकर निश्चित ही मंत्री के पैरों तले जमीन खिसक जाएगी। और तो और ऐसा ही एक वाकया पूर्व सपा नेता अमर सिंह के साथ हुआ। उनसे जादूगर को लिखित प्रशस्ति पत्र देने को कहा गया तो उन्होंने पत्र में एक टाटा सफारी और 51 हजार रुपए नगद इनाम देने की घोषणा कर डाली। कोरे कागज पर खुद उनके हाथ से लिखी इबारत बदल चुकी थी। ये सब भले ही नामुमकिन सा लगे लेकिन उन्हें अंजाम देने वाले जादूगर हैं राकेश श्रीवास्तव। खास बात यह है कि जादूगर राकेश के कारनामों में राष्ट्रीय एकता और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी सीख उन्हें अलग ही दर्जा प्रदान करती है।
जादूगरों की दुनिया में राकेश श्रीवास्तव एक जाना-माना नाम हैं। उन्होंने अपना सबसे पहला जादू प्रदर्शन 11 नवम्बर 1987 को लखनऊ के राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में पेश किया था। तब से उनका यह सफर निरंतर जारी है। उन्होंने देश के लगभग सभी शहरों और काठमांडू तक में बेहद सफल शो पेश किए हैं। उनकी कला से प्रभावित होकर यूपी सरकार की ओर से वर्ष 1994 में ‘कलाश्री सम्मान’ और 1996 में केंद्र की ओर से ‘गोगिया पाशा सम्मान’ से नवाजा गया।
साधारण वेशभूषा लेकिन असाधारण प्रतिभा वाले जादूगर राकेश श्रीवास्तव से पहली मुलाकात में कोई यह नहीं जान सकता कि वह मंच पर कितने बड़े-बड़े कारनामों को चुटकियों में अंजाम दे देते हैं। वह मंच पर कई लोगों को खड़ा कर एक-दूसरा का पेट पकडऩे को कहते हैं और अगले ही क्षण एक बोतल से कई लोगों को दूध पिता देते हैं। फिर अगले ही क्षण उसी दूध को किसी अन्य व्यक्ति के पेट से निकाल कर फिर बोतल में भर देते हैं। इसी तरह लडक़ी को कई टुकड़ों में काटना हो या एक साथ कई तलवारों को शरीर के आरपार करना या किसी व्यक्ति को कुर्सी में चिपका देने जैसे करतब उनके बायें हाथ का खेल हैं।

सरकारी नौकरी छोड़ बने जादूगर
जादूगर राकेश श्रीवास्तव ने कला के इस क्षेत्र में लम्बा सफर तय किया है। मूलत: अमेठी लेकिन वर्तमान में लखनऊ में रहने वाले राकेश ने 1986 में लॉ की डिग्री हासिल की। पिता बैजनाथ प्रसाद श्रीवास्तव तहसीलदार थे। डिग्री लेने के बाद भूमि संरक्षण कार्यालय में क्लर्क के पद पर नौकरी शुरू कर दी। बाद में लखनऊ जू में स्थित म्यूजियम में भी नौकरी की। जादूगर राकेश ने बताया कि इस क्षेत्र में उनका आगमन महज एक संयोग था। उनकी एक मित्र मिनी श्रीवास्तव प्रसिद्ध जादूगर मदन कुंडू के ग्रुप में काम करती थीं। उन्हीं के साथ वह एक दिन मदन कुंडू का कार्यक्रम देखने गए। बस वहीं से उनमें इस कला की तरफ रुझान पैदा हो गया। लेकिन उनको जादू की बारीकियां गुरु आनन्द शर्मा से सीखने को मिलीं। उनकी प्रेरणा से राकेश श्रीवास्तव ने जादू-प्रदर्शन शुरू कर दिया।
1987 में उन्होंने विदेश मंत्रालय की कल्चरल विंग भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) में सहायक कार्यक्रम अधिकारी के रूप में ज्वाइन किया। परिषद के तत्कालीन क्षेत्रीय निदेशक कृष्ण सहाय माथुर की प्रेरणा से उनके जादू दल को विशेष पहचान हासिल हुई। हालांकि बढ़ती व्यस्तताओं के कारण उन्होंने वर्ष 1989 में परिषद को अलविदा कह दिया और जादू की कला को ही करियर के रूप में अपनाने का फैसला कर लिया।

कार्यक्रमों में छिपे सामाजिक संदेश

जादूगर राकेश के कार्यक्रमों में सबसे खास बात यह है कि उनमें सामाजिक संदेशों को बेहद प्रभावी ढंग से पेश किया जाता है। कई बार वह कचरे को एक डिब्बे में भर कर उसे फूलों के गुलदस्ते में बदलकर स्वच्छता अपनाने की सीख देते हैं। इसी तरह अपने शो में वह ‘शौचालय बनवाएंगे फिर बहू लाएंगे’ और ‘समय से शादी देर से बच्चा’ जैसे संदेश देते हैं। उन्होंने एचआईवी जैसी खतरनाक बीमारी की रोकथाम और साक्षरता बढ़ाने के लिए जादू के माध्यम से प्रचार किया है। उनके कार्यक्रमों में राष्ट्रीय एकता पर भी विशेष तवज्जो दी जाती है। यूपी पर्यटन, संस्कृति विभाग यूपी एवं उत्तराखंड, सूचना विभाग, खादी ग्रामोद्योग, मद्य निषेध, ग्राम्य विकास, पंचायती राज और पुलिस विभाग के आमंत्रण पर बेहद सफल कार्यक्रम पेश किए। यही नहीं हरिद्वार, सारनाथ, झांसी और ताज महोत्सव जैसे जाने-माने आयोजनों में भी उन्होंने जादू पेश कर लोगों का भरपूर मनोरंजन किया है।

जादू ग्रुप असली ताकत
जादूगर राकेश श्रीवास्तव ने बताया कि उनके सभी प्रोग्राम की रीढ़ उनका 11 सदस्यीय ग्रुप है। उसमें महिला व पुरुष दोनों कलाकार शामिल हैं। वह यह कहते हुए जरा भी नहीं हिचकिचाते कि बिना सहयोगियों के मैं एक अच्छा शो नहीं पेश कर सकता। शो से पहले सामान जुटाने से लेकर कई अन्य तैयारियां ग्रुप के सभी सदस्य मिलकर करते हैं। मेरी सफलता में उनका बहुत बड़ा योगदान है।

नए चेहरे इस कला को अपनाएं
जादूगर राकेश श्रीवास्तव का कहना है कि भले ही लोग टीवी, मोबाइल या कम्प्यूटर को तवज्जो दें लेकिन जादू की कला अपने स्थान पर बरकरार है। नए लोग आगे आएं, तभी इसका भविष्य उज्जवल होगा। बस उनमें बेहतर अभिनय और बोलने की कला होनी चाहिए। वैसे जादू सिखाने के लिए मुरादाबाद में एक मैजिक स्कूल भी खोला गया है।

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