गुरुदेव रवींन्द्रनाथ टैगोर ने एक बार कहा था, ‘‘यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएँगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।’’यकीनन सच कहा था गुरुदेव ने। सच में स्वामी विवेकानन्द भारतीयता के प्रतीक थे। स्वामी विवेकानन्द का जन्म १२ जनवरी सन् १८६3 को कलकत्ता में हुआ था। इनका बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ था। इनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। माता श्रीमती भुवनेश्वरी देवीजी धार्मिक विचारों की महिला थीं। पिता के न रहने पर बालक नरेन्द्र जल्द ही जिम्मेदार हो गये और परिवार का भार उनके कंधों पर आ गया। स्वामी विवेकानंद यानी नरेन्द्र का बचपन बहुत ही कठिनता से बीता।
बालक नरेन्द्र जैसे जैसे बडे हो रहे थे उनके विचार देश को समर्पित हो रहे थे। २५ वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने भगवा वस्त्र धारण कर लिये। तत्पश्चात् उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। देखते ही देखते एक संन्यासी भारत की गौरव गाथा लिखने लगा। सन् १८९३ में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म परिषद में भगवा वस्त्र धारण किए इस संन्यासी की वाणी ने पूरी दुनिया को न सिर्फ चकित किया बल्कि भारतीय अध्यात्म का जादू लोगों के सिर चढकर बोला। शून्य की महिमा और भारतीय योगदान पर स्वामी जी ने सबकी बोलती ही बंद कर दी। विवेकानंद जी कहा करते थे कि वह व्यक्ति शिक्षित नहीं हैं जिसने कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली हों तथा जो अच्छे भाषण दे सकता हो, पर वास्तविकता यह है कि जो शिक्षा जनसाधारण को जीवन संघर्ष के लिए तैयार नहीं करती, जो चरित्र निर्माण नहीं करती, जो समाज सेवा की भावना विकसित नहीं करती तथा जो शेर जैसा साहस पैदा नहीं कर सकती, ऐसी शिक्षा से क्या लाभ?जीवन के अंतिम दिन भी उन्होंने अपने ‘ध्यान’ करने की दिनचर्या को नहीं बदला और प्रात: दो तीन घंटे ध्यान किया। उन्हें दमा और शर्करा के अतिरिक्त अन्य शारीरिक व्याधियों ने घेर रक्खा था। उन्होंने कहा भी था, ‘यह बीमारियाँ मुझे चालीस वर्ष के आयु भी पार नहीं करने देंगी।’ 4 जुलाई, 1902 को बेलूर में रामकृष्ण मठ में उन्होंने ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए। स्वामी विवेकानंद की जयंती पर हमारा ब्लैक बोर्ड हमारे प्रतिनिधि हिमांशु श्रीवास्तव के इस वीडियो के माध्यम से उन्हें शत शत नमन करता है।
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