शैक्षिक संवाद मंच की साप्ताहिक ई-कार्यशाला में रविवार शाम गूगल उत्तर प्रदेश के अनेक शिक्षकों ने आनलाइन शिक्षण की चुनौतियों, उपलब्धियों एवं संभावनाओं पर विचार विमर्श किया। कहा गया कि आनलाइन शिक्षण के कक्षा शिक्षण का विकल्प बनना भले ही दूर की कौड़ी लगती हो, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि आनलाइन शिक्षण ने नई राह दिखाई है।
इससे पहले ई-कार्यशाला का संचालन करते हुए सहारनपुर के नीलू चोपड़ा ने भूमिका रखी। कोरोना काल में विद्यालयों की बंदी के बीच आनलाइन शिक्षण की शुरुआत का जिक्र किया। जबकि शैक्षिक संवाद मंच के संयोजक तथा शिक्षक-साहित्यकार प्रमोद दीक्षित मलय ने बताया कि आनलाइन शिक्षण को लेकर शिक्षक शिक्षिकाओं से उनके अनुभव साझा करने के लिए ई-कार्यशाला आयोजित की गई है।
फतेहपुर की दीक्षा मिश्रा ने कहा कि आनलाइन शिक्षण शिक्षकों और बच्चों दोनों के लिए एक नया अनुभव है। हमारे अभिभावकों के पास स्मार्टफोन नहीं है। जिनके पास हैं भी तो डाटा भरवाने की सामर्थ्य नहीं है। शाहजहांपुर से अनीता शुक्ला ने कहा कि हमने 3 अप्रैल को व्हाट्सएप समूह बनाकर बच्चों को जोड़ा। अभिभावकों को समझाना कठिन था। लेकिन सतत संपर्क करके बच्चों तक सामग्री पहुंचाई। सभी बच्चों तक इस माध्यम से हम नहीं पहुंच सके। बांदा के रामकिशोर पांडे ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षण के सुखद अनुभव रहे हैं। विद्यालय बंद होने के बावजूद बच्चों से संपर्क बना रहा। यह शिक्षण का नया तकनीकी पक्ष है। इस पर काम करने से बच्चों और शिक्षकों की तकनीकी समझ बढ़ी है। अब हम सभी आसानी से ई-कंटेंट तैयार कर लेते हैं। पर हम इस विधा को पूर्ण विकल्प के तौर पर स्थापित नहीं कर सकते। इसकी अपनी सीमाएं हैं।
झांसी की सुमन गुप्ता ने विचार साझा किया कि 15 मार्च से ही समूह बनाकर माता अभिभावकों के माध्यम से शिक्षा को बच्चों तक पहुंचाया। हालांकि इस पर लगातार काम करने से बच्चों के आंखों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। मथुरा से सुनीता गुप्ता ने मत रखा कि विद्यालय के 15 फीसदी बच्चों तक ही हम पहुंच सके हैं। टीवी और रेडियो की ई-पाठशाला से भी बच्चे पढ़ रहे हैं। लेकिन कक्षा शिक्षण की जगह ऑनलाइन शिक्षण नहीं ले सकता। बांदा के चंद्रशेखर सेन ने सचेत किया कि होमवर्क करते समय अभिभावकों को बच्चों पर नजर रखनी चाहिए। अन्यथा वे गेम्स खेलने लगते हैं। गलत सामग्री देखे जाने की भी संभावना बनी रहती है। कौशांबी से प्रियदर्शिनी तिवारी ने कहा कि यूट्यूब, दीक्षा एप, रेडियो पाठशाला और मिशन प्रेरणा आदि के जरिए बच्चों को लाभान्वित किया जा रहा है। पर अभिभावक काम पर चले जाते हैं। देर शाम घर आते हैं और तभी बच्चे शिक्षण कर पाते हैं।
वाराणसी के अरविंद गुप्ता का मानना है कि आनलाइन शिक्षण संजीवनी की तरह उपयोगी है। इस नवीन विधा ने विद्यार्थियों को भय, डर, निराशा और हताशा से मुक्त किया है। साथ ही समाज में शिक्षकों की छवि भी बेहतर की है। सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ना श्रेयस्कर है। झांसी की श्रद्धा बबेले ने अभिमत दिया कि शिक्षा के क्षेत्र में डेस्क-कुर्सी और ब्लैक बोर्ड की जगह कंप्यूटर-मोबाइल ने ले ली है। बच्चों को भी ई-सामग्री प्राप्त हो रही है और स्वयं अध्ययन के बहुत से रास्ते खुले हैं। वाराणसी से कमलेश पांडे ने विचार दिया कि ऑनलाइन शिक्षण विधा पर काम करने का टीचर्स को कोई प्रशिक्षण नहीं था। बावजूद इसके शिक्षक-शिक्षिकाओं ने अपनी लगन और कल्पना से बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखा।
इस विधा पर न शोध है, नव्यवस्थित ढांचा और न पहुंच। बच्चों के बेहतर अधिगम स्तर का निष्पादन संभव होता नहीं दिखता क्योंकि बच्चों से प्रत्यक्ष संपर्क न होने से हम सीखने का आकलन नहीं कर पाते। औरैया के कृष्ण कुमार ने कहा कि आपदाएं संभावनाओं के द्वार भी खोलती हैं। शिक्षा में इतना तकनीकी प्रयोग पहली बार हुआ है। अभी इस विधा पर यह शुरुआती परिचय ही कहा जाएगा। दक्षता बाद में बढ़ेगी। वाराणसी के अब्दुल रहमान ने कहा कि हमने कक्षावार ग्रुप बनाकर काम शुरू किया पर ग्रामीण क्षेत्रों में नेट कनेक्टिविटी न होना एक बड़ी समस्या है। सहारनपुर की पूनम नामदेव व नूतन वर्मा, वाराणसी की छवि अग्रवाल, जोधपुर से माधुरी जायसवाल और राजेंद्र एवं कमलेश त्रिपाठी आदि 35 शिक्षक-शिक्षिकाओं ने विचार साझा किए। कौशांबी की श्रेया द्विवेदी और बांदा की शमसुन निशा ने कविताओं के जरिए अपनी बात रखी। नम्रता श्रीवास्तव, शैलेश शंखधर, मनुजा द्विवेदी, श्वेता मिश्रा, तपस्या पुरवार, आसिया फारूकी, जय श्रीवास्तव एवं राकेश द्विवेदी ने भी सहभाग किया। आयोजक प्रमोद दीक्षित ने सभी का आभार व्यक्त किया।
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