मेहनत और लगन से कोई भी काम किया जाए तो अंतिम मुकाम तक पहुंचा जा सकता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है कि उत्तराखंड में अल्मोड़ा जिले के मनोज चंद्र छिम्वाल ने। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की तरफ से आयोजित परीक्षा में पीसीएस के पद पर चयनित होकर न उन्होंने अपने परिवार का मान बढ़ाया है बल्कि गांव और समाज का भी नाम रोशन किया है।
अल्मोड़ा जिले के ताड़ीखेत विकासखण्ड के पजीना गांव निवासी मनोज चंद्र छिम्वाल ने उत्तराखंड का मान बढ़ाया है। वर्तमान में हल्द्वानी के भगवानपुर में रहने वाले मनोज किसान परिवार से हैं। पिता ईश्वरी दत्त छिम्वाल खेती के साथ पुरोहित हैं और मां लीला देवी गृहिणी हैं। अब बेटे की कामयाबी से परिवार में खुशी का माहौल है।
पीसीएस बने मनोज ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई गांव के ही सरकारी स्कूल से की। गांवों में पढ़ाई करने के लिए भी उन्हें स्कूल जाने के लिए प्रतिदिन आठ किमी पैदल जाना पड़ता था। एसएसजे कैंपस अल्मोड़ा, रामनगर कॉलेज और देश की दूसरी यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा हासिल की। वे इस समय वर्तमान में वह नैनीताल जिले के ओखलकांडा विकासखण्ड में प्रवक्ता के तौर पर कार्यरत हैं। इससे पहले एमिटी यूनिवर्सिटी और नवोदय विद्यालय पिथौरागढ़ में शिक्षक रह चुके हैं। मनोज शुरुआती दिनों में एक दैनिक अखबार में पत्रकार भी थे।
जुनून ने मनोज को बनाया अफसर
कहते हैं कि अगर कुछ करने का जुनून होतो सफलता हासिल की जा सकती है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है मनोज कुमार । पीसीएस में सफलता हासिल करने वाले मनोज का जुनून दूसरों को प्रेरणा देने वाला है। उन्होंने यूपी पीसीएस में तीसरे साक्षात्कार में सफलता प्राप्त की। यही नहीं, मनोज ने इससे पहले आइएएस व पीसीएस के लिए सात बार साक्षात्कार दिया। कभी उन्होंने हार नहीं मानी। हर परीक्षा के बाद नए सिरे से तैयारी में जुट जाते। मनोज ने बताया कि आत्मबल बढ़ाने के लिए उन्होंने मौन साधना भी की है। वह 2005 से 2012 तक सप्ताह में एक दिन मौन रहते थे। आत्मदर्शन, आत्मचिंतन और माता-पिता के मार्गदर्शन ने कभी टूटने नहीं दिया।
मनोज कुमार ने हिंदी, संस्कृत, समाजशास्त्र, संगीत, पत्रकारिता सहित सात विषयों में एमए किया हैं। हिंदी, राजनीतिशास्त्र में यूजीसी नेट में उन्होंने क्वालीफाई भी किया हैं। आईएएस, पीसीएस के लिए पहले हिंदी साहित्य, सोशल वर्क, राजनीतिक शास्त्र विकल्पीय विषय रखा। इस बार भूगोल के विकल्पीय विषय से कामयाबी मिली। मनोज खुद तैयारी करते हुए पिछले सात वर्षों से दिल्ली, जयपुर, भोपाल, ग्वालियर आदि शहरों में युवाओं को सिविल सेवा की तैयारी भी करा रहे थे।
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