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जब पीएम मोदी ने सुनी आईपीएस अफसर की कविता ‘मैं खाकी हूं’ 

जब पीएम मोदी ने सुनी आईपीएस अफसर की कविता ‘मैं खाकी हूं’

अभी हाल में सम्पन्न हुई युवा आईपीएस अफसरों की ट्रेनिंग में एक अफसर की कविता सुनकर पीएम मोदी ने भी तारीफ की। यह आईपीएस अफसर हैं यूपी के वाराणसी जिले में तैनात सुकीर्ति माधव मिश्रा। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में इस समय तैनात सुकीर्ति माधव मिश्रा हाल ही में हैदराबाद के सरदार वल्लभ भाई पटेल नेशनल पुलिस एकेडमी से पास होने वाले युवा आईपीएस अफसर है। इस दौरान पीएम मोदी ने सभी युवा आईपीएस अफसरों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए संबोधित किया था। प्रधानमंत्री ने युवा आईपीएस अफसरों से उनके अनुभव के बारे में भी बातचीत की थी।

इस दौरान मध्य प्रदेश कैडर के आईपीएस सुकीर्ति माधव मिश्रा को प्रधानमंत्री के सामने बोलने का मौका मिला तो उन्होंने अपने साथी कोरोना वॉरियर देवेंद्र चंद्रवंशी को याद करते हुए ‘मैं खाकी हूं’ कविता सुनाई। ‘मैं खाकी हूं’ कविता लिखने वाले 2015 बैच के आईपीएस सुकीर्ति माधव मिश्रा इस समय पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एसपी सुरक्षा के पद पर तैनात हैं। यह कविता इससे पहले भी चर्चा में थी। पीएम मोदी के सामने सुनाई गई है यह कविता सोशल मीडिया पर इसे खूब पसंद और शेयर किया जा रहा है।

वाराणसी आईपीएस अफसर सुकीर्ति माधव मिश्रा मूलरूप से बिहार के जमुई जिले के मलयपुर गांव के रहने वाले हैं। उनकी कविता इतनी पसंद की जाएगी और इतनी तारीफ सुनने को मिलेगी। इस युवा आईपीएस अफसर ने यह कविता उन्होंने वर्ष 2017 में ट्रेनिंग के दौरान लिखी थी। जब उन्होंने यह कविता लिखी थी उस दौरान वह मेरठ के कंकरखेरा में तैनात थे। बता दें, इससे पहले मैं खाकी हूं कविता को नासिक के पुलिस कमिश्नर विश्वास नांगरे पाटिल और बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार भी अपनी आवाज दे चुके हैं।

मैं खाकी हूं।
दिन हूं रात हूं, सांझ वाली बाती हूं, मैं खाकी हूं।
आंधी में, तूफान में, होली में, रमजान में, देश के सम्मान में,
अडिग कर्तव्यों की, अविचल परिपाटी हूं, मैं खाकी हूं।
तैयार हूं मैं हमेशा ही, तेज धूप और बारिश, हंस के सह जाने को, सारे त्योहार सड़कों पे, भीड़ के साथ मनाने को, पत्थर और गोली भी खाने को, मैं बनी एक दूजी माटी हूं, मैं खाकी हूं।
विघ्न विकट सब सह कर भी, सुशोभित सज्जित भाती हूं,
मुस्काती हूं, इठलाती हूं, वर्दी का गौरव पाती हूं, मैं खाकी हूं।
तम में प्रकाश हूं, कठिन वक्त में आस हूं, हर वक्त मैं तुम्हारे पास हूं, बुलाओ, मैं दौड़ी चली आती है, मैं खाकी हूं।
भूख और थकान की वो बात ही क्या, कभी आहत हूं, कभी चोटिल हूं, और कभी तिरंगे में लिपटी, रोती सिसकती छाती हूं, मैं खाकी हूं।
शब्द कह पाया कुछ ही, आत्मकथा में बाकी हूं, मैं खाकी हूं।

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