देश में आईएएस और आईपीएस बनने की ऐसी कई बड़ी कहानियां है जो कि हमेशा ही हमको आपको और बच्चों को प्रेरणा देती है। बात अगर आईपीएस बनने की आती है तो सबसे पहले नवनीत सिकेरा का नाम आता है जिन्होंने अपने पिता के साथ में हुए दुर्व्यवहार से आहत होकर आइपीएस बनने की ठानी थी। आखिरकार वह आईपीएस बने भी और यूपी कैडर के ही। पुलिस से मिले कटु अनुभवों से निराश होने के बजाए सिस्टम को बदलने और इंसाफ पाने की एक और कहानी है, जो संघर्ष और मुश्किलों से भरी है। ऐसी कई कहानियां आपको फिल्मों में जरूर देखने को मिलती है, लेकिन इसके सभी किरदार वास्तविक हैं।
आज हम आपको एक ऐसे ही सख्स के बारे में बताने जा रहे हैं जो कि अपने पिता के हत्यारों को पकड़ने में पुलिस की तरफ से की गई लापरवाही की वजह से आईपीएस बने। जी हां, गाजियाबाद में एसपी देहात के रूप में तैनात 2015 बैच के आइपीएस नीरज कुमार जादौन की। जालौन जिले के रहने वाले नीरज के पिता की हत्या 2008 में कर दी गई थी पिता के मर्डर केस की पैरवी में नीरज को पुलिस से मदद नहीं मिली। पिता को इंसाफ दिलाने के लिए उन्होंने खुद आइपीएस बनने की ठान ली। उन्हें अपना मकसद पूरा करने में कभी निराशा मिली तो कभी हताशा हुई, लेकिन इसके बाद भी वह जंग नहीं हारे। अपने इरादे के पक्के नीरज ने हार नहीं मानी और आइपीएस बन गए। बस फिर क्या था, आरोपितों की हेकड़ी ढीली हो गई और स्थानीय पुलिस ने भी नियमानुसार कार्रवाई की।
एसपी ग्रामीण नीरज कुमार जादौन मूलरूप से जालौन के नौरेजपुर गांव के निवासी है, उनका जन्म कानपुर में हुआ था। यहीं स्कूलिंग और फिर आइआइटी, बीएचयू से कंप्यूटर साइंस में बीटेक की डिग्री लेकर एमएनसी ज्वॉइन कर ली। वह नौकरी करने के लिए नोएडा व बेंगलुरू से लेकर यूके तक गए। जब बेंगलुरू में थे तब उनके पिता की हत्या कर दी गई। केस की पैरवी शुरू की तो पुलिस का रवैया देख वह बहुत ही दुखी हुए। पीड़ित की मदद करने को बनी पुलिस आरोपितों का साथ दे रही थी। मगर पिता को इंसाफ दिलाना था तो नीरज ने आइपीएस बनने की ठान ली। वर्ष 2010 में नौकरी के साथ ही तैयारी शुरू कर दी और 2011 में पहले ही प्रयास में इंटरव्यू तक पहुंच गए, जिसमें सफलता नहीं मिली। दूसरे प्रयास में रैंक कम रह गई और तीसरे प्रयास के लिए आवेदन करने तक उम्र अधिक हो चुकी थी।
आखिर छोड़ दिया 22 लाख का पैकेज
उनके पिता की हत्या के बाद परिवार में सबसे बड़े नीरज चार भाई-बहनों के इकलौते सहारा थे। भाई-बहनों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए वह नौकरी नहीं छोड़ सकते थे। इसीलिए उन्होंने नौकरी के साथ में ही तैयारी करने की कोशिश की। उम्र पूरी होने के कारण नीरज काफी निराश हुए, लेकिन तभी इसी बीच में केंद्र सरकार की तरफ से एक अच्छी खबर आई कि अब 32 साल की आयु तक के अभ्यर्थी आवेदन कर सकते हैं। आखिर नीरज के लिए इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता था। नीरज ने इसे अंतिम मौका मानते हुए 22 लाख रुपये सालाना का पैकेज छोड़ दिया और तन-मन से परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। अगले ही प्रयास में 140वीं रैंक हासिल कर नीरज आइपीएस बन गए। नीरज जादौन के भाई पंकज व रोहित सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं तो राहुल व बहन उपासना भी इस समय हाईकोर्ट में वकालत करते हैं।
नीरज की गाजियाबाद से भी जुड़ी हैं जड़ें
गाजियाबाद देहात के एसपी नीरज कुमार जादौन की जड़ें पहले से ही गाजियाबाद से जुड़ी रही हैं। उनके दादा कम्मोद मोदी मिल में मजदूर थे। 1967-69 तक दादा कम्मोद मोदीनगर ही रहे। मगर बॉयलर फटने के बाद वह परिवार सहित कानपुर चले गए। इसी वजह से नीरज जादौन गाजियाबाद से खास लगाव भी रखते हैं।
क्राइम में बेहतर पकड़
आईपीएस नीरज कुमार जादौन क्राइम में बेहतर पकड़ रखते हैं। पुलिस विभाग में कोई क्राइम पर अच्छी पकड़ रखता है यानी पेचीदा केस खोलना तो कोई जनता से संवाद बना कानून-व्यवस्था बनाए रखना जानता है। वहीं बेहतर होता और नीरज जादौन के अंदर में ये दोनों ही काबिलियत हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान देहात क्षेत्र में हत्या, लूट व डकैती के रिकॉर्ड ही नहीं बल्कि उनका घटनाक्रम और खोलने का तरीका तक उन्हें मुंह जुबानी याद है। यही नहीं, वह जनता से सीधा संवाद रखने में भी माहिर हैं। पीड़ित यदि उन तक अपनी समस्या पहुंचा दे तो निदान की पूरी गारंटी देते हैं। यही वजह है कि लोग उन्हें देखने के बाद कानून हाथ में नहीं लेते। आइपीएस नीरज कुमार जादौन ने किसानों के खिलाफ गलत तरीके से दर्ज कई मुकदमे खत्म कराए ताकि उनका पुलिस में विश्वास बना रहे। वह इस समय गाजियाबाद की जनता के बीच में बहुत ही चहेते एसपी बन गए हैं।
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