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स्मृति: कांग्रेस की धरोहर रहे प्रणव मुखर्जी, वित्त सुधार को लेकर किया बड़ा काम 

स्मृति: कांग्रेस की धरोहर रहे प्रणव मुखर्जी, वित्त सुधार को लेकर किया बड़ा काम

बंगाल से राजनीति करते हुए राष्ट्रपति तक का सफर तय करने वाले भारत के 13वें राष्ट्रपति और भारत रत्न प्रणव मुखर्जी अब नहीं रहे। देश के 13वें राष्ट्रपति रहे प्रणव मुखर्जी का आज 84 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। बीते कुछ समय से बीमार चल रहे थे वे कोरोना पॉजिटिव भी पाए गए थे। उनके बेटे अभिजीत मुखर्जी ने यह जानकारी दी। दिल्ली कैंट स्थित आर्मी रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में उनका इलाज किया जा रहा था।

आज सुबह ही अस्पताल की तरफ से बताया गया था कि फेफड़ों में संक्रमण की वजह से वह सेप्टिक शॉक में थे। सेप्टिक शॉक की स्थिति में रक्तचाप काम करना बंद कर देता है और शरीर के अंग पर्याप्त ऑक्सीजन प्राप्त करने में विफल हो जाते हैं। उन्हें 10 अगस्त को दिल्ली कैंट स्थित सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इससे पहले उनकी कोरोना रिपोर्ट भी पॉजिटिव आई थी। यूपीए और कांग्रेस में प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार थे। उन्हें ‘पीएम इन वेटिंग’ भी कहा जाता था। कांग्रेस ने उन्हें सात रेसकोर्स नहीं बल्कि राष्ट्रपति भवन पहुंचाकर एक बड़ा पद दिया था।

देश में साल 2012 से 2017 तक प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति पद की गरिमा बनाये रहे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रणव मुखर्जी का कद बहुत बड़ा था। साल 1996 से 2012 के बीच तक में कई बार ऐसे मौके आए जब वह पीएम के रूप में भी देखे जा सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राष्ट्रपति बनने से पहले वे मनमोहन सिंह की सरकार में वित्त मंत्री थे। भारत को आर्थिक गतिविधियों में मजबूती देने का उन्होंने कई बार बड़ा काम किया। वे भारत के आर्थिक मामलों, संसदीय कार्य, बुनियादी सुविधाएँ व सुरक्षा समिति में वरिष्ठ नेता रहे हैं।

उन्होंने विश्व व्यापार संघठन व भारतीय विशिष्ठ पहचान प्राधिकरण क्षेत्र में भी कार्य किया था, जिसका अनुभव उन्हें भारत की राजनैतिक सफर में बहुत काम आया। मोदी सरकार ने उन्हें भारत रत्न देकर सम्मानित किया था। प्रणब जी के कुछ रोचक जीवन के पहलुओं के बारे में.

मिराती में जन्में थे प्रणव दा उर्फ पोल्टू

भारत रत्न प्रणव मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर 1935 में पश्चिम बंगाल के वरिभूमि जिले के मिराती गांव में हुआ था। ‘प्रणब दा’ और ‘पोल्टू’ के नाम से मशहूर इस शख्सियत को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 84 साल के प्रणब दा देश के वित्त मंत्री, विदेश मंत्री और राष्ट्रपति पद पर काबिज रहे। उनकी गितनी पढ़े-लिखे और साफ छवि के नेताओं में होती रही। वह गांधी परिवार के विश्वास पात्र रहे। इंदिरा गांधी के वे बहुत ही करीब रहे। उनके पिता किंकर मुखर्जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और माता राजलक्ष्मी मुखर्जी गृहणी थी। उनकी दो बहनें अन्नपूर्णा बनर्जी एवं अन्नानापूर्णा बंदापधाय है। उनकी पत्नी शुभ्रा मुखर्जी रहीं, जिनका साल 2015 में निधन हो गया है। उनके पुत्रों मं अभिजित मुखर्जी, इंद्रजीत मुखर्जी और बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी हैं।

पिता रहे विधानसभा के सदस्य
प्रणब मुखर्जी जी का जन्म बंगाल के वीरभूम जिले के मिराती गांव में एक बंगाली कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी एक स्वतंत्रता संग्रामी थे और 1952-64 तक बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे। इनकी माता गृहणी एवं भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थी। उनके घर में शुरू से ही राजनीतिक का माहौल रहा है। उन्होंने बचपन से ही राजनीति में आने का फैसला बना लिया था। प्रणब मुखर्जी जी ने शुरूआती पढ़ाई तो अपने गृहनगर के स्थानीय स्कूल में ही पूरी की।

प्रणब मुखर्जी ने वीरभूमि शहर के सूरी विद्यासागर कॉलेज से पढ़ाई के बाद पॉलिटिकल साइंस और इतिहास में एमए किया। इसके अलावा उन्होंने एलएलबी की भी डिग्री हासिल की। इसके बाद वह पढ़ाने लगे। हालांकि उन्होंने कुछ समय बाद अपना करियर राजनीति चुना। पहले ही दौर में इंदिरा गांधी पर अपनी छाप छोड़ी। बैंकों के राष्ट्रीयकरण में भूमिका निभाई। उन्होंने कानून की पढ़ाई के लिए कोलकाता में इंट्री की और यहां की कलकत्ता यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया।

प्रणव मुखर्जी का राजनीतिक सफर

प्रणव मुखर्जी ने अपने करियर की शुरुआत पोस्ट ऑफिस में एक क्लर्क के रूप में की थी। सन् 1963 में विद्यानगर कॉलेज में वे राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर बन गए और साथ ही साथ पत्रकार के रूप में कार्य करने लगे। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1969 से की। प्रणब मुखर्जी 1969 में इंदिरा गांधी की मदद से कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य चुने गए। जल्द ही वह इंदिरा गांधी के बेहद खास हो गए और 1973 में कांग्रेस सरकार के मंत्री भी बन गए।

इंदिरा जी के कार्यकाल के दौरान वे औद्योगिक विकास मंत्रालय में उप-मंत्री बन गए। साल 1975-77 में इमरजेंसी के दौरान प्रणव मुखर्जी पर भी बहुत से आरोप लगे। लेकिन इंदिरा जी की सत्ता आने के बाद उन्हें क्लीन चिट मिल गई। इंदिरा गांधी जी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान ही प्रणव मुखर्जी साल 1982 से 1984 तक वित्त मंत्री के पद पर रहे। वे कांग्रेस के टिकट से चार बार राज्यसभा पहुंचें।

राजीव गांधी से बेहतर नहीं रहे संबंध

1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद उनके संबंध कांग्रेस बिगड़ गए। इंदिरा गांधी के निधन के वक्त प्रणब मुखर्जी और राजीव गांधी दोनों बंगाल दौरे पर थे। खबर सुनकर दोनों आनन-फानन में दिल्ली लौटे। कहा जाता है कि उस वक्त राजीव ने प्रणब से पूछा कि अब कौन? इस पर प्रणब का जवाब था- पार्टी का सबसे वरिष्ठ मंत्री। यह बात रास नहीं आई थी। राजीव गांधी के नेतृत्व में बनी सरकार में प्रणव मुखर्जी को मंत्री बना गया, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपनी राह अलग कर ली और अलग पार्टी “राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस” गठित की।

सन् 1985 में प्रणब जी पश्चिम बंगाल कांग्रेस समिति के अध्यक्ष भी रहे। थोड़े समय के बाद 1989 में राजीव गांधी के साथ में उनकी सुलह हो गई और वे एक बार फिर कांग्रेस से जुड़ गए। पी वी नरसिम्हा राव के राजनीतिक करियर को आगे बढ़ाने में प्रणव मुखर्जी का बहुत बड़ा योगदान रहा। पी वी नरसिम्हा रावजी जब प्रधानमंत्री थे, तब उन्होंने प्रणव मुखर्जी को योजना आयोग का प्रमुख बनाया था। थोड़े समय बाद उन्हें केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और विदेश मंत्रालय का कार्य भी सौंपा गया।

सोनिया गांधी के रहे बहुत ही खास

राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के बुरे दिनों में प्रणब मुखर्जी सोनिया गांधी के भी करीबी हो गए और 1998 में सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनवाने में उनका भी योगदान रहा। ऐसे समय में प्रणव जी का बहुत बड़ा योगदान रहा। वे साल 1999 से 2012 तक कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव कमेटी के अध्यक्ष रहे। साल 1997 में प्रणव मुखर्जी को भारतीय संसद ने उन्हें उत्कृष्ट सांसद के रूप में पुरस्कार भी दिया था। ऐसा कहा जाता है कि जब सोनिया गांधी ने राजनीति में आने का सोचा तो प्रणब मुखर्जी ही उनके मेंटर बने और उन्हें बताया कि कैसे उनकी सास इंदिरा जी काम किया करती थी। सोनिया गांधी को कांग्रेस प्रमुख बनाने में प्रणव मुखर्जी का बहुत बड़ा योगदान रहा। राजनीति के सारे दाव पेंच सोनिया गांधी को प्रणव मुखर्जी ने ही सिखाए थे। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रणव मुखर्जी की बिना परामर्श के सोनिया गांधी कुछ नहीं करती थीं।

साल 2004 में लोकसभा चुनाव जीतकर आएं
वर्ष 2004 में जब कांग्रेस की सरकार बनीं, उस समय प्रणव मुखर्जी जंगीपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर आए थे। इनके साथ ही साथ कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में यूपीए बनी। प्रधानमंत्री पद को छोड़ कर वे रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री, वित्त मंत्री और लोकसभा में पार्टी के नेता के रूप में सराहनीय काम किया। इस दौरान मनमोहन सिंह को कांग्रेस ने प्रधानमंत्री बनाया। कहते है अगर उस समय प्रणव मुखर्जी को प्रधानमंत्री बनाया जाता तो आज देश विकास के क्षेत्र में बहुत आगे होता। प्रणब मुखर्जी पीएम मनमोहन सिंह के बाद कांग्रेस के दूसरे बड़े नेता थे। प्रणब मुखर्जी जी को कांग्रेस पार्टी का संकटमोचक भी कहा जाता है। कांग्रेस की डूबती नैया को प्रणव मुखर्जी ने ही कई बार पार लगया था।

प्रणब मुखर्जी जी का राष्ट्रपति बनने का सफर
2012 में इस्तीफे से पहले मनमोहन सिंह की सरकार में उनकी हैसियत नंबर- 2 के नेता थे। 2012 में कांग्रेस ने उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में उतारा और वह आसानी से पीए संगमा को चुनाव में हराकर देश के 13वें राष्ट्रपति बन गए। उन्होंने भाजपा के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी पीए संगमा को 70 प्रतिशत वोटों से हराकर राष्ट्रपति पद पर चुनाव जीते। वे पहले बंगाली थे जो राष्ट्रपति बने थे।

प्रणव ने गांधी परिवार को करीब से देखा था, उनका इंदिरा गांधी से काफी करीबी रिश्ता था। हालांकि प्रणव मुखर्जी का साधारण नेता से राष्ट्रपति बनने तक का सफर आसान नहीं रहा, उन्हें काफी उतार चढाव का सामना करना पड़ा। उन्होंने कांग्रेस को अपने जीवन के करीब 40 साल दिए। प्रणव मुखर्जी हमेशा ही संयम के साथ में काम करते थे। वे कांग्रेस की मजबूत धरोहर रहे, जिसे कांग्रेस कभी भी नहीं खोना चाहती थी। उनके बेटे अभिजीत मुखर्जी और बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी कांग्रेस पार्टी में ही है और सक्रिय भूमिका में हैं।

प्रणब मुखर्जी ने यह लिखी किताबें

सन 1969 में – मिडटर्म पोल
सन 1984 में – इमर्जिंग डाइमेंशन्स ऑफ इंडियन इकोनॉमी
सन 1987 में – ऑफ द ट्रैक
सन 1992 में – सागा ऑफ स्ट्रगल एंड सैक्रिफाइस
सन 1992 में – चैलेंज बिफोर दी नेशन,
सन 2014 में – द ड्रामेटिक डिकेड : द डेज ऑफ़ इंदिरा गाँधी इयर्स

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