अगर हौसला हो तो फिर कुछ भी काम करना मुश्किल नहीं होता है। ऐसा ही कुछ कर दिया था 1857 की क्रांति में मंगल पांडे ने, जिन्होंने अंग्रेजों के सामने आजादी का बिगुल फूंक दिया। देश की आजादी की नींव रखने वाले समूची अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती पेश करने वाले मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को हुआ था। देश की आजादी की नींव रखने वाले मंगल पांडे की हिम्मत और हौसले के आगे समूची अंग्रेजी हुकूमत छोटी पड़ गई थी।
मंगल पांडे का नाम नाम ‘भारतीय स्वाधीनता संग्राम’ में अग्रणी योद्धाओं के रूप में लिया जाता है, जिनके द्वारा भड़काई गई क्रांति की ज्वाला से अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन बुरी तरह हिल गया था। मंगल पांडे की शहादत ने भारत में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल और पहली क्रांति के बीज बोए थे। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार ने उनके सम्मान में सन् 1984 में एक डाक टिकट भी जारी किया है।
आखिर कौन थे मंगल पाण्डेय
क्रांतिकारी मंगल पाण्डेय ने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है।
मंगल पाण्डेय जी का जन्म भारत में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के दुगवा नामक गांव में 19 जुलाई 1827 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मंगल पाण्डेय सन् 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हो गए। क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। कुछ सन्दर्भों में इनका जन्म स्थल फैजाबाद जिले (वर्तमान अम्बेडकर नगर) की अकबरपुर तहसील के सुरहुरपुर ग्राम में बताया गया है।
उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे तथा माता का नाम अभय रानी था। महज 22 साल की उम्र में वह अंग्रेज्रों की सेना में भर्ती हुए। वे कलकत्ता (कोलकाता) के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में “34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री” की पैदल सेना के 1446 नंबर के सिपाही थे। भारत की आजादी की पहली लड़ाई अर्थात् 1857 के संग्राम की शुरुआत उन्हीं के विद्रोह से हुई थी।
बंदूक बनी असल वजह
1857 की क्रांति की विद्रोह की असल वजह यह थी कि बंदूक की गोली में दी जाने वाली चर्बी। सिपाहियों को 1853 में एनफील्ड बंदूक दी गई थी। इस नयी बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली (प्रिकशन कैप) का प्रयोग किया गया था। इसमें बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी।
अंग्रेजों की तरफ से आई नई एनफील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस के बाहरी आवरण में चर्बी होती थी जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी। सिपाहियों के बीच अफवाह फैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है।
8 अप्रैल को दी गई फांसी
29 मार्च को बैरकपुर परेड मैदान पर ही मंगल पाण्डेय ने अफसर लेफ्टीनेंट बाग पर हमला कर दिया और गंभीर रूप से घायल हो गया। इस रेजीमेंट में पूरी तरह से आग फैल गई और सैनिकों में आक्रोश फैल गया। इस रेजीमेंट में शेख पलटू को छोड़कर पूरी रेजीमेंट को गिरफ्तार कर लिया गया।
सरकार ने 6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया और उन्हें 8 अप्रैल, 1857 का फांसी देना सुनिश्चित किया गया। बैरकपुर के जल्लादों ने मंगल पांडे के खून से अपने हाथ रंगने से इनकार कर दिया। ऐसे में अंग्रेजों को कलकत्ता (कोलकाता) से चार जल्लाद बुलाए गए थे।
8 अप्रैल, 1857 के सूर्य ने उदित होकर मंगल पांडे के बलिदान का समाचार संसार में प्रसारित कर दिया। इस तरह से भारत के एक वीर पुत्र ने आजादी के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी गई। भारत सरकार ने बैरकपुर में शहीद मंगल पांडे महाउद्यान के नाम से उसी जगह पर उद्यान बनवाया था।
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