बच्चों को पढ़ाने के साथ ही साथ सिखाया जा रहा लाइफ में जीना और कैसे रुपयों को करना है खर्च।
कहते हैं ‘जहाँ चाह, वहां राह’ तो ऐसा ही कुछ कर दिखाया है, झारखंड रांची के उन चार युवाओं ने जिन्होंने हाईस्कूल में पढ़ाई के दौरान ही एक संगठन खड़ा दिया। गरीब तबके के बच्चों को की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए उन्हें पढ़ाई-लिखाई से मजबूत करने के उद्देश्य से उनकी तरफ से शुरू किया गया अभियान रंग लाया। गरीब बच्चों की मद्द कर रहे इन युवाओं को देखकर लोग बढ़ते चले गए और वर्तमान में यह संगठन रांची में काफी लोकप्रिय हो चुका है। कभी महज चार युवाओं के साथ शुरू हुए ‘फॉलेन लीव्स‘ नामक एक स्वयंसेवी संगठन में आज 70 से अधिक युवा शामिल है और वह लोग इस संगठन को मजबूती दे रहे हैं।
दसवीं क्लास से शुरू किया गया था संगठन
रांची निवासी 23 वर्षीय रजत विमल जब दसवीं कक्षा में थे, जब उन्होंने ‘फॉलेन लीव्स‘ नामक एक स्वयंसेवी संगठन की शुरुआत की। रजत के साथ इस संगठन में उनके चार दोस्त भी शामिल थे। चार दोस्त आयुष बुधिया, सौरव चौधरी, विवेक अग्रवाल और ऋषभ ऋतुराज ने 2014 में इस संगठन की नींव डाली और वर्तमान में इस संगठन में कारवां काफी आगे बढ़ चुका है। इस समय इस संगठन में लगभग 70 युवा शामिल हो चुके हैं। इस समय एमबीए कर रहे संगठन के संस्थापक रजत कुमार बताते हैं कि हमें स्कूल में ‘गिविंग इट बैक टू सोसाइटी’ यानी कि समाज को कुछ वापस देने के कॉन्सेप्ट के बारे में पढ़ाया गया था। हम लोगों ने उसी कॉन्सेप्ट पर काम शुरू किया और हम सभी दोस्त उस समय महज 15- 16 की उम्र के थे। समाज में कुछ अच्छा करने की जिज्ञासा जागृत हुई और हम लोगों ने संगठन को खड़ा कर दिया। ” उन्होंने बताया कि गरीब तबके और अनाथ आश्रमों में पलने-बढ़ने वाले युवाओं की जिंदगी को बेहतर बनाने के उद्देश्य से हम लोगों ने काम शुरू किया और उसी राह पर आगे बढ़ते चले गए। उन्होंने बताया कि हम लोग हम मिलकर इन बच्चों को शिक्षा और करियर से जोड़ रहे हैं और उन्हें लाइफ स्किल्स के बारे में सिखा भी रहे हैं।
संगठन पूरे साल करता रहता है कई इंवेट
संगठन की तरफ से गरीब बच्चों की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए संगठन की तरफ से पूरे वर्ष कई सारे इवेंट्स का आयोजन किया जाता है। यह संगठन साल भर बच्चों की खातिर कोई न कोई इवेंट करता ही रहता है। उन्होंने बताया कि युवाओं की यह टोली इन बच्चों को पढ़ाई-लिखाई के साधन, करियर काउंसलिंग, कपड़े-जूते आदि के साथ-साथ वर्तमान डिजिटल युग से भी जोड़ रही और डिजिटल जमाने के साथ में आगे चलना भी सिखा रही है। रजत बताते हैं, “हमारा संगठन बहुत सारे फन लर्निंग एक्टिविटी करते हैं। फन लर्निंग इसलिए क्योंकि हम बच्चों को अनोखे तरीके से पढ़ाया जाता है। हमारे यहां से संचालित होने वाले कई प्रोग्राम में बच्चों को सीखने के लिए बहुत कुछ होता है। डिजिटल क्लासरूम, पर्सनल काउंसलिंग सेशन से लेकर मॉक मॉल एक्सपीरियंस- महाबाजार जैसी गतिविधियां भी हमारा संगठन करता है।”
संगठन ने शुरू की यह खास पहल
संगठन की तरफ से बच्चों को बेहतर गुण सिखाने के लिए कई सारे प्रोग्राम भी शुरू किए गए हैं। संगठन ने एक प्रोग्राम, ‘शाम की पाठशाला’ के तहत बच्चों के लिए ‘डिजिटल क्लासरूम’ की पहल शुरू की है। हम लोगों की तरफ से चलाई जाने वाली इन क्लासरूम में उन्हें सिर्फ पढ़ाया ही नहीं जाता है बल्कि उनके मनोरंजन के लिए ज्ञानवर्धक फिल्में और कार्टून भी दिखाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि हमारी कोशिश रहती है कि बच्चे दिलचस्पी को समझकर उन्हें उसी क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करें। उन्होंने कहा कि हम लोग बच्चों को पढ़ाई के साथ ही साथ ही अन्य कई स्किल के बारे में भी सिखा रहे हैं। रजत कहते हैं कि उनके यहां से कई बच्चों को फुटबॉल जैसे खेलों की ट्रेनिंग, तो बहुतों को पेंटिंग वर्कशॉप के लिए भेजा जाता है। उन्होंने बताया कि हमारी टीम अपने पॉकेट मनी और कुछ अन्य समर्थकों की मदद से अपने प्रोग्राम्स के लिए फंडिंग जुटाती है। इससे बच्चों की खातिर कॉपी, किताब, बैग और स्टेशनरी का अन्य सामान भी हम लोग लेकर आते हैं।
‘महाबाजार’ सिखा रहा खरीददारी का गुण
बच्चों में खरीददारी का गुण सिखाने के लिए इस समय एक खास कार्यक्रम तैयार किया गया है। रजत ने बताया “हमारा एक खास प्रोग्राम है ‘महाबाजार’- यह एक मॉक मॉल एक्सपीरियंस है बच्चों के लिए। हम और आप आसानी से मॉल से शॉपिंग कर सकते हैं, लेकिन इन बच्चों के लिए यह बहुत अलग अनुभव है। हम लोग हर साल यह महाबाजार लगाते हैं ताकि इन बच्चों को मॉल में शॉपिंग करने का अनुभव सिख सकें। महाबाजार में एक जगह पर कपड़ों, खिलौनों और जूतों आदि के बहुत से स्टॉल लगाए जाते हैं, जहां से बच्चे अपनी मन-पसंद चीजों की खरीददारी कर सकते हैं।” उन्होंने बताया कि सभी बच्चों को महाबाजार से खरीददारी के लिए एक नकली डेबिट कार्ड भी दिया जाता है। बच्चों को खरीददारी के लिए लिमिट महज 1000 रुपये ही रखी जाती है। रजत ने बताया कि यह मॉल का अनुभव तो है ही, इसके साथ वे इन बच्चों को पैसे का सही मैनेजमेंट सिखाते हैं। बच्चे कैसे करके कम बजट में खरीददारी कर सकते हैं और फिजूल खर्चों से बच सकते हैं। अब बच्चे यहां पर बहुत ही बेहतर तरीके से खरीददारी कर रहे हैं और उन्हें एक अलग तरह का अनुभव भी मिल रहा है।
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