लदाख – वांगचुक को अभी हाल ही में महाराष्ट्र के पुणे विश्वविद्यालय द्वारा मानद डी. लिट की डिग्री से सम्मानित किया गया है। उन्हें सिम्बायोसिस इंटरनेशनल (डीम्ड यूनिवर्सिटी) पुणे द्वारा एक इनोवेटर और एजुकेशनिस्ट के रूप में उनके काम को मान्यता देते हुए सम्मानित किया गया। इस खास अवसर पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद मुख्य अतिथि के रूप में वहां मौजूद थे। वांगचुक ने कहा कि उन्होंने वही किया जो मानवता लोगों डिमांड करती है। डिग्री लेने के बाद, वांगचुक ने कहा कि उन्होंने कुछ भी बड़ा या विशेष नहीं किया है। इंजीनियर से एजूकेटर बने वांगचुक ने कहा, “मैंने वही काम किया जो मानवता लोगों से करने को कहती है।”
आपको बता दें कि वांगचुक ने छात्रों के शैक्षणिक और सांस्कृतिक आंदोलन लद्दाख (SECMOL) की स्थापना की है। 3 इडियट्स फिल्म के फुंसुख वांगड़ू का किरदार लद्दाख के रहने वाले इंजिनियर सोनम वांगचुक से प्रेरित था। वांगचुक उन प्रतिभावान बच्चों के सपनों को पूरा करने का काम कर रहे हैं, जिन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं मिल पाता। उन्होंने इसके लिए एजुकेशनल ऐंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख नाम का संगठन बनाया है। पिछले 20 सालों से वो दूसरों के लिए पूरी तरह समर्पित होकर काम कर रहे हैं। वास्तव में असल ज़िन्दगी के सोनम वांगचुक, फिल्मी पर्दे के ‘फुंगसुक वांगड़ू’ से बड़े हीरो हैं। वागंचुक को लद्दाख में बर्फ स्तूप कृत्रिम ग्लेशियर परियोजना के लिए लॉस एंजिलिस में पुरस्कृत भी किया गया है। यह कृत्रिम ग्लेशियर 100 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है।
इसे अनावश्यक पानी को इकटट्ठा करके बनाया गया है। वांगचुक का सबसे अलहदा स्कूल बचपन में वांगचुक सात साल तक अपनी मां के साथ एक रिमोट लद्दाखी गांव में रहे। यहां उन्होंने कई स्थानीय भाषाएं भी सींखीं। बाद में जब उन्होंने लद्दाख में शिक्षा के लिए काम करना शुरू किया, तो उन्हें अहसास हुआ कि बच्चों को सवालों के जवाब पता होते हैं लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी भाषा की वजह से होती है। वांगचुक ने 1988 में लद्दाख के बर्फीले रेगिस्तान में शिक्षा की सुधार का जिम्मा उठाया और स्टूडेंट एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख की स्थापना की। वांगचुक का दावा है कि सेकमॉल अपने तरह का इकलौता स्कूल है, जहां सबकुछ अलग तरीके से किया जाता है। वह आधुनिक शिक्षा का मॉडल रखने की लगातार कोशिश कर रहे हैं और काफी हद तक इसमें सफल भी हुए हैं। वह आधुनिक शिक्षा का मॉडल रखने की लगातार कोशिश कर रहे हैं और काफी हद तक इसमें सफल भी हुए हैं।
आम बच्चों के लिए काम वांगचुक ने सरकारी स्कूल में काम करने का फैसला किया क्योंकि आम बच्चे वहीं जाते हैं. इसके अलावा साल 1994 में उन्होंने ऑपरेशन न्यू होप लॉन्च किया, जिसके जरिए सरकार, गांवों की पंचायतों और आम जनता के बीच शिक्षा के स्तर पर बेहतर तालमेल बनाया जा सके. वांगचुक ने जब कोशिश शुरू की तो वहां 95 फीसदी बच्चे बोर्ड परीक्षा में फेल हो जाते थे, जिससे निराश होकर वह पढ़ाई छोड़ देते थे. उनके नए आइडिया और कड़ी मेहनत की ही नतीजा है कि इस आंकड़े में बड़ी गिरावट आई है.
2013 की सर्दियों में, वांगचुक और उनके छात्रों ने 1.5 लाख लीटर पानी की बर्फ से 6-फुट का प्रोटोटाइप स्तंभ बनाया. 3,000 मीटर की हाइट पर, उनकी टीम इस नदी के बहाव के दबाव के जरिए इसमें से पानी का फव्वारा निकालने में सफले रही. जैसे ही यह पानी बाहर निकल कर जमीन पर गिरता, बर्फ बन जाता.
वांगचुक की इस खोज के लिए उन्हें रोलैक्स पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस पुरुस्कार के लिए उन्हें 1 करोड़ रुपये भी दिये गए, जिसका इस्तेमाल वे हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑल्टरनेटिव्स के लिए करेंगे. इस स्कूल के छात्र अपनी पढ़ाई का खर्च स्वयं प्रायोजित करेगे. इस स्कूल में विद्यार्थी अलग-अलग देशों से आकर शिक्षा, संस्कृति और पर्यावरण के अलावा टूरिज्म पर भी रिसर्च करेंगे.
रिपोर्ट – अमित सिंह पालीवाल
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