बेहद खूबसूरत माहौल में सम्पन्न हुयी 30 नवम्बर को साहवेस द्वारा संचालित स्कूल सम्राट अशोक विद्या उद्यान की चालीसवीं अभिभावक संगोष्ठी. एक शैक्षिक सत्र में तीन बार ऐसा अवसर आता है. जब अभिभावकों को संगोष्ठी के लिए आमंत्रित किया जाता है. यदा कदा जब कभी बच्चों के किसी विशेष कार्यक्रम के लिए अभिभावकों को उनके बच्चों के लिए उनसे विशेष सहयोग की अपेक्षा की जाती है तो विशेष मीटिंग्स भी आयोजित की जाती है वो इस मीटिंग से थोड़ी अलग होती है जो कि एक सामूहिक कार्यशाला की तरह होती है.
स्कूल है तो पैरेंट्स टीचर्स मीटिंग के लिए यूँ तो सामान्य रूप से केवल बच्चों का रिपोर्ट कार्ड दिखा दिया जाए इतना ही पर्याप्त होना चाहिए, लेकिन साहवेस के स्कूल कुछ अलग हट के होता है जैसे कि-
पैरेंट्स के आने के पहले या एक दिन पहले मैनेजर, प्रिंसिपल और टीचर्स मीटिंग.
◾अभिभावकों के स्वागत के लिए बच्चों की दिशा टीम और विद्यार्थी प्रशासन की मीटिंग.
◾सभी टीचर्स परंपरागत वेश भूषा में या स्कूल द्वारा निर्धारित यूनिफार्म में बैठने-बिठाने की व्यवस्था .
■ बच्चों की एडेमिक से लेकर पिछली गतिविधियों को पेन ड्राइव के माध्यम से स्क्रीन पर लगाना या मैनेजर की स्पीच आदि या अभिभावकों के आने जाने और वार्तालाप को लाइव दिखाने की व्यवस्था आदि.
◾अत्यंत धीमे स्वर के मधुर संगीत के साथ अभिभाकों का स्वागत.
■दिशा टीम के लीडर और अन्य बच्चों द्वारा जयहिन्द अभिवादन देना.
◾रेड कार्पेट सुंदर रंगीन कुर्सियों में प्रतीक्षा के लिए बैठने की खुशनुमा मुस्कुराती हुयी व्यवस्था.
◾सभी टीचर्स के बैक वाल पर या टेबल पर उनके नाम के साथ क्लास का टैग.
◾बच्चों और अभिभावकों का मनोबल बढ़ाने वाले सुंदर संदेशों के टेम्पलेट.
■ रिपोर्ट कार्ड के बजाय गजट स्लिप देने की व्यवस्था.
■ स्कूल कैप्टन या दो वाइस कैप्टन द्वारा संचालित हेल्प डेस्क में सम्पर्क करके अपने बच्चे का डेस्क और सम्बंधित टीचर पता करना
■ दिशा टीम के एक बच्चे के साथ डेस्क तक जाना.
◾डेस्क पर बच्चे की एकेडमिक रिपोर्ट लेना, अभिभावक का वेरिफिकेशन फार्म में हस्ताक्षर कराना.
◾डेस्क पर प्रत्येक सम्बंधित टीचर के साथ विद्यार्थी प्रशासन के दो सीनियर बच्चों का टीचर के सहायक के साथ होना और मुस्कुराते हुए सहायता करना.
◾एकेडमिक रिपोर्ट लेने के पश्चात स्कूल से सम्बंधित कोई शिकायत या सुझाव बताना या पेटिका में डालना.
◾जाते समय प्रबंधक/प्रधानाचार्य से मुलाकात करना और न केवल एकेडमिक बल्कि समयानुसार बच्चों से सम्बंधित व्यक्तिगत, उनके स्वास्थ्य, खान-पान, फीडबैक आदि की चर्चा करना. विशेषकर नए अभिभावकों के साथ या फिर जिनकी कोई समस्या हो उनसे.
और अंत मे..
■ आया के साथ आपके साहवेसियन बच्चों की सेवा टीम द्वारा अभिभावकों के जाते समय उन्हें मुस्कुराते हुए चाय बिस्किट या पानी पिलाकर विदा करना.
देखने/ पढ़ने में लग रहा होगा कि बहुत समय लगता होगा ये सब करने में या समय की बर्बादी आदि लेकिन ये सारी प्रक्रिया में ढाई से तीन सौ बच्चों के लिए कुल तीन से चार घण्टे का समय लगता है. ज्यादा हों तो भी इतना ही समय लगेगा. बच्चों की टीम सहायक की भूमिका में होती है जिसके कारण टाइम मैनेजमेंट गजब का होता है.
सभी को बहुत अच्छा लगता है.
जो नहीं अच्छा लगता है वो ये है कि-
?प्रायः मीटिंग रविवार को होती है, कभी कभी शनिवार को रख दी जाती है तो अभिभावक उपस्थिति का प्रतिशत ज्यादा नही पांच से सात तक घट जाता है. रोज कमाने खाने वालों की बस्ती है बहुत से बच्चों की मायें भी काम करती हैं.
?पान मसाला खाकर आना पूर्णतयः प्रतिबंधित है, यहां तक कि खाकर विद्यालय के छोटे से परिसर में घुसने पर भी ₹250 की पेनाल्टी लगाने का सख्त प्राविधान है. ये जांच भी बच्चों और आया के पास रहती है. टोकने या समझने को कभी लोग इसे अपनी प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान समझ लेते हैं. लेकिन तब प्रबन्धन सख्त भी हो जाता है.
?जरा सा भी अभद्र भाषा का प्रयोग करने या अनावश्यक बहंस करने पर सख्त अनुशासनात्मक कार्यवाही का भी प्राविधान है (मलीन बस्ती है शुरुआती दौर में कई बार छुटभैये नेता अपनी हनक जमाने के लिए आ जाते थे लेकिन अब नहीं चलती किसी की)
खैर जो भी हो सम्राट अशोक विद्या उद्यान की हर मीटिंग ही विशेष होती है हर बार कुछ न कुछ नया होता है. यहां हमारा सोंचना केवल मीटिंग तक नहीं रहता बल्कि ये रहता है कि यदि कोई मित्र या स्कूल प्रबंधक अपने स्कूलों के विषय में या अपने संस्थान के विषय मे सोंचता है तो उसे प्रबंधक होने के अहम या अपनी शिक्षा के दम्भ से मुक्त होकर हमारे इस प्रयोग से कुछ सीखे और अपने विद्यालय की मीटिंग को रोचक बना दें. शायद यही कारण है सन 2013 से लगातार तमाम स्कूलों के लोग साहवेस आते हैं और हमारे निवेदन पर या स्वयम अपनी मर्जी से अपने यहां लागू करते हैं.
हमारे सलाहकार प्रेरणास्रोत श्री गणेश तिवारी भैया, श्रीमती कविता तिवारी माँ, छोटे भाई अतुल आक्रोश, अजीत खोटे जी सहित तमाम प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता, दिल्ली पब्लिक स्कूल के स्पोर्ट्स टीचर, तमाम शोधरत आईआईटियन्स, प्रोफेसर गणेश बागड़िया जी, पूर्व सैन्य अधिकारी कैप्टन सुरेश चंद्र त्रिपाठी जी, कुछ आई ए एस, कुछ आई पी एस अधिकारी, लिंगवा फ्रेंका की फाउंडर डायरेक्टर श्रीमती पूजा पांडेय जी, भोपाल के मित्र सुहास जी, दिल्ली के मित्र आशुतोष जी आदि के साथ साथ देश के अलग राज्यों से आये तमाम लोग जो इस छोटी सी जगह विजिट कर गए हैं और जब कभी कहीं स्कूल के मूल्यपरक शिक्षा की चर्चा होती है तो वो एक बार अपने मिलने वालों से ये अवश्य बोलते हैं जाइये एक बार धर्मेन्द्र का स्कूल अवश्य देख कर आइये.
#खुशीमिलतीहै अपनी इस प्रयोगशाला के चौदह वर्षों की तपस्या के विषय में ये वाक्य सुनकर..
और बेहतर करने के लिए मन भाव से भर जाता है.
कभी आप भी आइये न…
“बच्चों को शिक्षार्थ लाइये सेवार्थ ले जाइए” यह कथन आपको यहां शत प्रतिशत चरितार्थ होता देखने को मिलेगा.
जैसा कि आपको अभी बता चुका हूं साहवेस की शिक्षा व्यवस्था स्वयं में एक प्रयोगशाला है. मेरी एक साधना जिसे आपकी जनसहभागिता बल अब मिलने लगा है. दस वर्ष हमने अपने ही प्रयोगों अनुप्रयोगों से बहुत कुछ सीखा, बहुत संघर्ष भी किया. परंपरागत रूप से स्कूलों में जो होता आया है, उसे भी अपनाया और अपने विशेष तरीके से रोचक बनाया. मेरा मानना है कि इंजन यदि दमदार है तो डिब्बे स्वयमेव खिंचे चले आएंगे.
चाहे सुबह की प्रार्थना हो, लंच का समय हो, कैंटीन हो, सामूहिक भोज हो, बच्चों की टीम लीडरशिप हो, बाल चेतना हो, योगा, ध्यान मेडिटेशन हो, वेस्ट मैटेरियल प्रोडक्ट बनाना हो, परीक्षा हो, प्रतिदिन तिरंगे के साथ जयहिन्द सेरेमनी हो. छुट्टी का टाइम हो आदि सब कुछ विशेष है. हमेशा इन पर शोध करता रहता हूँ.
मलीन बस्ती के पिछड़े परिवारों के या पितृविहीन बच्चे ज्यादा हैं, ये सब आर्थिक रूप से बहुत मजबूत नहीं है. इनसे आप मिलेंगे तो किसी कान्वेंट से कम नहीं लगेंगे ये बच्चे.
साहवेस का प्रोजेक्ट सम्राट अशोक विद्या उद्यान स्कूल स्वयं में एक अध्ययन है.इसे समझना आसान है लेकिन करने के लिए इच्छाशक्ति और त्याग चाहिए. मूल्यपरक शिक्षा के जिस स्वरूप को हम लेकर चल रहे हैं वो यहां के क्षेत्रीय लोगों के पारिवारिक माहौल के बिल्कुल विपरीत है, जिसे अभिभावक विशेषकर पुरुष अभिभावक समझना ही नहीं चाहते. शायद यही कारण है कि हमारा एकेडमिक पार्ट अभी बहुत मजबूत नहीं हो पाया है फिलहाल डिजिटल तकनीक की व्यवस्था हो गयी है, इस वर्ष से इस पर भी पकड़ बनाकर हम बहुत ही जल्द सफल होंगे.
इन सबके बावजूद झूठी शान और रिश्तेदारी निभाने के चक्कर मे या छोटी सोंच और बुरी आदतों के प्रति सख्ती के चलते, साथ ही आस पास दुकानों की तरह खुले पूर्ण व्यवसायिक स्कूलों के ऑफर और लोभ लालच आदि के चक्कर हम लोगों को समस्याओं का भी बहुत सामना करना पड़ता है. लेकिन खुशी है हमारा अकेला बच्चा भारी पड़ता आस पास के दुकानों जैसे स्कूलों के पचास पचास सौ सौ बच्चों पर.
कुल ढाई सौ से तीन सौ सत्रह बच्चों से ज्यादा बच्चों का प्रवेश हम नहीं लेते या फिर अधिक कमज़ोर बच्चों को सांयकालीन कक्षाओं में लेते हैं.
मजे की बात ये है कि एकेडमिक भले ही बहुत मजबूत न हो लेकिन मानव मूल्यों के मामले में इक्का दुक्का छोड़ जितने भी है, आपके सभी साहवेसियन बच्चों की नैतिक शिक्षा, आत्मविश्वास (confidence) और सेवाभाव अद्भुत है. विशेष है. नाज है मुझे अपने बच्चों पर.
शायद ये स्कूल पिछड़ी बस्ती में न होता, स्टेटस की चाह रखने वालों के स्टेटस से जुड़ा होता तो तमाम आर्थिक रूप से मजबूत लोग भी अपने बच्चों को यहां अवश्य लाते. छह सात सम्पन्न मध्यमवर्गीय परिवारों के लोग अपने बच्चों को साहवेस में लाये भी लेकिन मियां बीवी की व्यक्तिगत वैचारिक असमानता, उनके स्टेटस और अंग्रेजियत के कारण हमारा धर्मस्थल उन्हें न भाया.
बहुत आगे तक जा चुके हैं यहाँ के बच्चे
समय बताएगा ये राष्ट्रीय स्तर तक भी पहुचेंगे.
आशीर्वाद दीजिये कि हमारी सोंच को ये अंजाम तक अवश्य पहुचाएं.
अतिश्योक्ति भले ही लगे लेकिन होगा सच.
रिपोर्ट – धर्मेंद्र केआर सिंह
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