कर्नाटक – संस्कृत के अस्तित्व को लेकर अक्सर चिंता जताई जाती है. संस्कृत को लेकर स्कूलों में छात्रों का रुझान ना होने की वजह से ये सवाल किए जाते हैं कि इस भाषा का भविष्य में कोई नाम लेने वाला भी रहेगा या नहीं. इन्हीं सब आशंकाओं के बीच दक्षिणी राज्य कर्नाटक से संस्कृतप्रेमियों के लिए अच्छी ख़बर है. कर्नाटक के शिमोगा जिले में मात्तुर नाम का ऐसा गांव है जहां का हर बाशिंदा संस्कृत में ही बात करता है. क्या बच्चा, क्या बूढ़ा और क्या जवान सभी धाराप्रवाह संस्कृत में बात करते हैं. कर्नाटक विधानसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच ही ‘आजतक’ आपको इस अनोखे गांव से रू-ब-रू कराने जा रहा है. मात्तुर गांव में करीब 300 परिवार रहते हैं. इस गांव में प्रवेश करते ही आपको एक अलग सा अनुभव होगा. गांव वालों की वेशभूषा देखकर ही आपको लगेगा कि चाणक्य के दौर वाले भारत में पहुंच गए हैं. सिर्फ पहनावे को ही नहीं इस गांव के लोगों ने दुनिया की सबसे प्राचीनतम सभ्यता और भाषा को भी सहेज कर रखा हुआ है.
बेंगलुरू से करीब 320 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मात्तुर गांव के ही रहने वाले श्रीनिधि कहते हैं कि इस गांव की बोलचाल की भाषा संस्कृत ही है. यहां गांव में संस्कृत पढ़ाने के लिए हर तरह की व्यवस्था है, पाठशाला में विशेष कक्षाएं होती हैं और बिना किसी जातिगत भेदभाव के कोई भी बच्चा शिक्षा ले सकता है. संस्कृत को पढ़ने और समझने में यहां के बच्चों को भी कोई दिक्कत नहीं. यहां बच्चा-बच्चा फर्राटे से संस्कृत बोलता है. इस रिपोर्टर ने जब बच्चों से पूछा कि उन्हें क्या-क्या पसंद है तो उन्होंने विशुद्ध संस्कृत में ही फटाफट जवाब दिए. बच्चों को वेदों का भी अच्छा ज्ञान है. इस दौरान बच्चे भी रिपोर्टर के जैसे ही अंदाज़ में संस्कृत में बोलते दिखे- ‘सबसे तेज़ ख़बरों के लिए देखते रहिए आजतक.’
हालांकि इस गांव की पारंपरिक भाषा संकेती है, लेकिन हर घर में संस्कृत का विद्वान आपको जरूर मिलेगा. जितनी फर्राटेदार संस्कृत यह बोलते हैं उतने ही फर्राटे से अंग्रेजी भी बोलते हैं. यानी आधुनिक दुनिया से भी गांव की कदमताल पूरी है. गांव के ही एक बड़े बुजुर्ग अरुणा अवधानी से जब अंग्रेजी में सवाल किए गए तो उन्होंने तपाक से जैसे जवाब दिए वो चौंकाने वाला था. यहीं नहीं जो संस्कृत में बोला उसका हाथों हाथ हिन्दी और अंग्रेजी में अनुवाद भी कर दिया. राजनीतिक दृष्टि से भी मात्तुर गांव के लोग काफी सजग दिखे. अरुणा अवधानी ने संस्कृत में कहा, ‘ये नहीं कह सकता, कर्नाटक में इस बार किसे सत्ता मिलने जा रही है, हां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब चुनाव प्रचार के लिए उतरेंगे तब तस्वीर साफ होगी.’
इसी गांव के ही नंद कुमार से मिले तो वो पैंट-शर्ट पहने थे. नंद कुमार बोलते हैं तो उनकी ज़ुबान पर संस्कृत के सिवा कुछ नहीं आता. टूटी फूटी हिंदी में नंद कुमार ने कहा कि उनकी अगली पीढ़ी भी संस्कृत को बड़े शौक से अपना रही है.गांव की चौपाल पर कुछ बुजुर्ग हाथों में तुलसी की माला लिए आपस में चर्चा करते दिखे. उन्होंने बताया कि वर्ष 1980 से ही यह गांव संस्कृत को अपने दिल में उतार चुका है. इन बुजुर्गों का कहना है कि संस्कृत कभी कश्मीर से कन्याकुमारी और द्वारका से नेपाल तक बोली जाती थी, आज गांव वालों के लिए ये भाषा सबसे अनमोल धरोहर है.
दुनिया के और हिस्सों से भी इस गांव के तार कैसे जुड़े हैं, इसकी मिसाल हैं गांव के ही एक परिवार की बेटी रेवा. लंदन में रहने वालीं रेवा कहती हैं जब विदेश में भी संस्कृत को बहुत सम्मान और महत्व के साथ देखा जाता है तो उन्हें अपने गांव पर बहुत गर्व होता है. गांव में चाणक्य जैसी ही पोशाक में एक विद्धान मिले. नाम- चिंतामणि. वे बताते हैं कि ये पोशाक उनकी परम्परा का हिस्सा है. चिंतामणि कहते हैं कि बहुत अच्छा लगता है जब बाहर से लोग गांव का नाम सुनकर आते हैं और संस्कृत में दिलचस्पी दिखाते हैं. चिंतामणि से रिपोर्टर की बात हो रही थी तो सामने से रुक्मणी नाम की महिला आती दिखीं. चिंतामणि और रुक्मणी ने आपस में संस्कृत में ही बात की. रुक्मणी ने भी संस्कृत भाषा पर गर्व जताया.
हिन्दी को लेकर रुक्मणि ने कहा- ‘हिंदी भाषा नाजानामि’ यानी उन्हें हिंदी भाषा का ज्ञान नहीं है. इसके बाद रिपोर्टर के सवालों का चिंतामणि ने संस्कृत में अनुवाद किया. रुक्मणी ने संस्कृत में ही उनका जवाब दिया. फिर चिंतामणि ने समझाया कि रुक्मणी ने क्या बोला. चलते चलते चिंतामणि ने ये भी दिखा दिया कि अगर संस्कृत में रिपोर्टिंग की जाए तो कैसे होगी.
रिपोर्ट – अमित सिंह पालीवाल
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