सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने भावुक हो गए थे। भावुक होने का कारण देश की अदालतों में भारी संख्या में जजों के खाली और करोड़ों की संख्या में लंबित मुकदमे हैं। ठाकुर ने प्रधानमंत्री के सामने देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट और जिला अदालतों में न्यायाधीशों के रिक्त पड़े पदों को शीघ्र भरने का अनुरोध किया था। लेकिन न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर रिटायर हो गए उनके स्थान पर जस्टिस जेएस खेहर देश के मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी संभाल चुके हैं। अदालतों में खाली पड़े जजों के पद और लंबित मुकदमों का मुद्दा जस का तस बना हुआ है। कानून में एक कहावत आम है। ‘देर से मिला न्याय अन्याय है।’ देश की अदालतों में इस समय तीन करोड़ मुकदमें लंबित हैं। कुल लंबित मुकदमों में से बीस फीसदी दस वर्ष पुराने हैं तो दस फीसदी मुकदमें महिलाओं से संबंधित और तीन फीसदी मामले वरिष्ठ नागरिकों से जुड़े हुए हैं।
मुकदमों को निपटाने का कानूनी तरीका
देश भर की जिला अदालतों में इस समय कुल तीन करोड़ मुकदमें लंबित हैं। उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 51 लाख मुकदमें जिला अदालतों में लंबित हैं। राष्ट्रीय स्तर पर लंबित मुकदमों का यह लगभग 24 फीसदी है। इसी तरह महाराष्ट्र 29 लाख के साथ 13 फीसदी, गुजरात 22.5 लाख के साथ 11 फीसदी, बिहार और पश्चिम बंगाल में लगभग एक बराबर 13 लाख लंबित मुकदमें हैं जिसका राष्ट्रीय औसत 6 फीसदी है। सरकार और अदालतें लंबित मुकदमों को शीघ्र निपटाने के लिए समय-समय पर कई कदम उठाती रही हैं। लेकिन ये सारे कदम नाकाफी सिद्ध हुए हैं। केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने लंबित मुकदमों का निपटारा करने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की योजना चलाई। देश में इस समय कुल 1734 फास्ट ट्रैक कोर्ट काम कर रहे हैं। लेकिन फास्ट ट्रैक कोर्ट भी अदालतों का बोझ कम करने में सक्षम साबित नहीं हुए।
सरकार एवं अदालतों को बिहार ग्राम कचहरी की सीख
सरकारी स्तर पर अपराध और मुकदमों को कम करने के जितने भी प्रयास अभी तक हुए हैं सब नाकाफी सिद्ध हुए हैं। बिहार ग्राम कचहरी नामक संस्था ने स्थानीय स्तर पर मिसाल पेश की है। न्याय पंचायतों को बिहार में ग्राम कचहरी कहा जाता है। देश के दूसरे राज्यों में जहां न्याय पंचायतें बंद पड़ीं हैं वहीं पर बिहार में ग्राम कचहरी उल्लेखनीय भूमिका निभा रही है। बिहार राज्य निर्वाचन आयोग ग्राम पंचायत के चुनाव के साथ ही ग्राम कचहरी का चुनाव कराता है। इसके लिए पंच और सरपंच का चुनाव होता है। सरपंच के सहयोग के लिए एक विधि स्नातक को न्यायमित्र तथा एक हाईस्कूल तक शिक्षित व्यक्ति को सचिव के रूप में नियुक्त किया जाता है। न्याय मित्र और सचिव की नियुक्ति राज्य सरकार के अनुमोदन से होता है। इस तरह ग्राम कचहरी का गठन होता है।बिहार में ग्राम कचहरी जमीनी स्तर पर क्या कम कर रही है इसके कई उदाहरण समाने हैं। समस्तीपुर जिले के सरायरंजन प्रखंड में स्थित धर्मपुर ग्राम पंचायत में पिछले दस वर्षों में यहां की ग्राम कचहरी ने लगभग 400 विवाद दाखिल हुए। ग्राम कचहरी ने अपने यहां आए सभी विवादों का निपटारा किया। एक भी विवाद ऐसा नहीं है जिसमें संबंधित पक्षकारों ने ग्राम कचहरी के फैसले से असहमति जताई हो। अधिकांश विवादों में दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ। बाकी विवादों में दोषी पक्ष पर आर्थिक जुर्माना लगाया गया। ग्राम कचहरी द्वारा लगाये गए जुर्माने को दोषी पक्ष ने सहर्ष अदा किया।
इस गांव के सरपंच मनीष कुमार झा हैं। विधि स्नातक मनीष तीसरी बार लगातार भारी मतों से सरपंच चुने गए हैं। मनीष कहते हैं कि, ग्रामीणों में ग्राम कचहरी के प्रति गहरी आस्था है। कुछ मामलों में तो दोनों पक्षों की गलती होती है। अधिकांश विवाद लेन-देन और छोटी-मोटी बातों को लेकर होता है। ग्राम कचहरी में दोनों पक्षों को उनकी गलती बताते हुए समझौते का प्रयास किया जाता है। मनीष एक विवाद का संदर्भ देते हुए बताते हैं कि, दलित वर्ग के दो परिवारों के बीच रुपये के लेन-देन को लेकर विवाद हुआ। एक परिवार की महिला का दूसरे परिवार के पुरुष से झगड़ा हुआ था। झगड़े में गाली-गलौज और मारपीट हुई थी। महिला ने ग्राम कचहरी में शिकायत दर्ज कराई थी। यह विवाद ग्राम कचहरी की पूर्ण पीठ द्वारा सुना गया। सुनवाई में सरपंच और उपसरपंच के अतिरिक्त सात अन्य पंच शामिल थे। इनमें से छह पंच महिला थीं। ग्राम कचहरी में विधिवत सुनवाई हुई। इस दौरान गांव के भी काफी लोग मौजूद थे। इस खुली सुनवाई में दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद सभी पंचों ने न्यायमित्र की सलाह के साथ-साथ सरपंच से भी चर्चा की। पंचों के अनुसार दोनों पक्ष दोषी पाए गए। दोनों पक्षों को उनकी गलतियों से अवगत कराते हुए ग्राम कचहरी ने उनके बीच समझौते का प्रस्ताव रखा। दोनों पक्षों ने सहजता से इसे स्वीकार किया ओर पूरी रजामंदी के साथ समझौते के पेपर पर हस्ताक्षर किए।
बिहार में यदि ग्राम कचहरी सक्रिय न होती,तो क्या होता? जाहिर है कि ऐसे में उक्त मामला थाने में जा सकता था। थानों में क्या-क्या होता है,हम सब अच्छी तरह परिचित हैं। यह भी हो सकता था कि यह विवाद धीरे-धीरे और बड़ा रूप ले लेता और फिर जिला अदालत या उससे भी आगे जाता। उनके बीच का परस्पर भाईचारा और सद्भाव सदैव के लिए नष्ट हो जाता।बिहार के संदर्भ में ग्राम कचहरी ने जिन विवादों पर कार्यवाही की उसमें 58 फीसदी विवाद जमीन संबंधित और 20 फीसदी घरेलू विवाद हैं। जाति एवं वर्ग के आधार पर देखा जाए तो 85 फीसदी विवाद दलित एवं पिछड़े वर्ग से संबंधित हैं। बिहार में ग्राम कचहरी में आए विवादों का 90 फीसदी हिस्सा समझौते से हल हो गया। शेष दस फीसदी मामलों में सौ से एक हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया। ग्राम कचहरी में कुल मामलों में से महज 03 प्रतिशत विवाद ही ऊपरी अदालतों में गए।
हिमाचल प्रदेश में न्याय पंचायत
बिहार के ग्राम कचहरी की तरह ही हिमाचल प्रदेश में न्याय पंचायत लंबे समय से ग्राम जीवन में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। स्थानीय स्तर पर आने वाले छोटे-मोटे विवादों और झगड़ों को हल कर न्याय पंचायत सार्थक संदेश दे रहा है। हिमाचल प्रदेश के न्याय पंचायतों के कामकाज के बारे में ग्रामीण एवं औद्योगिक विकास शोध संस्थान के वर्ष 2011 के अध्ययन में यह बात सामने आयी कि अपने पास आने वाले लगभग सभी विवादों का निपटारा करने में समर्थ साबित हुई है।
उत्तर प्रदेश में न्याय पंचायतों को बहाल करने की मांग
उत्तर प्रदेश में 1972 में अंतिम बार न्याय पंचायतों का गठन हुआ जो 1977 तक अपनी भूमिका निभाती रहीं। उत्तर प्रदेश में चार दशकों से न्याय पंचायतें अस्तित्वहीन हैं। तीसरी सरकार,अपनी सरकार अभियान के संयोजक डॉ. चंद्रशेखर प्राण प्रदेश में न्याय पंचायतों को बहाल करने की मांग कर रहे हैं। प्राण कहतें हैं कि उत्तर प्रदेश पंचायती राज अधिनियम -1947 की धारा -52 के अनुसार न्याय पंचायतों के अधिकार क्षेत्र में भारतीय दंड संहिता की लगभग 39 धाराएं हैं। भारतीय दंड संहिता की उक्त 39 धाराओं के तहत यदि प्रदेश की न्याय पंचायतें मामलों को सुलझाने लगें तो प्रदेश के अधिकांश मामले गांव स्तर पर ही सुलझ जाएं।
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