झारखंड के कोडरमा जिले के एक गांव की तस्वीर गांववालों ने खुद बदली। अपने नियम बनाये। अब यह गांव माओवादियों के आतंक से पूरी तरह मुक्त है। शराबबंदी व नसबंदी लागू कर डगरनवां पंचायत का सिमरकुंडी गांव ने देश के सामने एक उदाहरण रखा है। कभी इस गांव में माओवादियों का आतंक था। गांव में आने-जाने के लिए संपर्क पथ नहीं था। माओवादी किसी भी समय आकर खाना, तो कभी संगठन के लिए बच्चे तक की मांग कर दबाव बनाते थे. तमाम समस्याओं के बीच लोग जंगल का जंगल काट अपनी आजीविका चलाते थे, पर आज इस गांव में हर तरफ रौनक है।डगरनवां पंचायत का सिमरकुंडी सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार पूरी तरह वर्जित है, वर्षों से इस गांव का कोई विवाद थाने नहीं पहुंचा। सामान्य सा दिखने वाला कोडरमा जिले के मरकच्चो प्रखंड का सिमरकुंडी गांव। आज अन्य गांवों के लिए मिसाल बना हुआ है। वनों की सुरक्षा को लेकर शुरू हुए अभियान को आज पांच सूत्र में पिरो कर समाज को नयी दिशा दे रहा है।
पूर्ण शराबबंदी के साथ नसबंदी का है अनुशासन
डगरनवां पंचायत का सिमरकुंडी झारखंड का पहला ऐसा गांव है, जहां पूर्ण शराबबंदी के साथ ही नसबंदी का नियम लागू है। जनसंख्या नियंत्रण के लिए यहां के लोगों ने दो बच्चों से अधिक रखने पर पाबंदी लगा रखी है और इसका पालन भी कर रहे हैं। शराबबंदी व नसबंदी के साथ ही गांव के लोग कुल्हाड़ बंदी, चारा बंदी व मेड़ बंदी का नियम अपना रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण से लेकर जनसंख्या नियंत्रण की बात करें या फिर मृदा संरक्षण सभी क्षेत्रों में लोग काम कर रहे हैं। यह सब कुछ संभव हुआ है, वन विभाग की पहल व जन जागरूकता से। करीब 50 घरों व 250 की आबादी वाले इस गांव में घटवार, आदिवासी व रवानी जाति के लोग रहते हैं। हर कोई स्वावलंबी बन अपने पैरों पर खड़े हैं।
गांव वालों ने श्रमदान से बनाई सडक
सिमरकुंडी गांव का वन क्षेत्र करीब 1810.9 एकड़ में फैला है। वन सुरक्षा समिति के अध्यक्ष मुखलाल राय बताते है कि पहले लोग हर दिन 40 बोझा लकड़ी काट कर बाजार में बेचने जाते थे. इसी से उनकी आजीविका चलती थी। वर्ष 2007 में तत्कालीन वन प्रमंडल पदाधिकारी सिद्धार्थ त्रिपाठी ने इस गांव पर विशेष ध्यान देना शुरू किया और हजारीबाग के पर्यावरण प्रेमी महादेव महतो के साथ यहां कैंप कर लोगों को वनों का महत्व समझाया. विभाग की पहल पर मनरेगा से गांव को आने वाली पगडंडी जैसे रास्ते के लिए कच्ची सड़क बनाने का प्रस्ताव पारित हुआ।
यहां हर वर्ष लगता है पर्यावरण मेला
लोगों ने खुद श्रम दान कर सड़क बनाने के लिए एक बड़ा पहाड़ काट कर रास्ता बनाया. सड़क के बन जाने के बाद वन विभाग ने ही गांव के विकास की पहल की और यहां के लोगों को विभिन्न योजनाओं का लाभ दिलाना शुरू किया फिर क्या था, जंगल उजाड़ने वाले लोगों ने इसकी सुरक्षा करनी शुरू कर दी. आज इस जंगल में करीब 100 प्रजाति के पेड़-पौधे हैं। जंगल में वन शक्ति देवी की पिंडी बनायी गयी है। यहां हर वर्ष 25 दिसंबर को पर्यावरण मेला लगता है गांव से महिलाएं व बच्चियां थाली में राखी, प्रसाद व अगरबत्ती लेकर आकर पेड़-पौधों में बांध विधि-विधान से पूजा-अर्चना व परिक्रमा कर वन संरक्षा का संकल्प दिलाती है। क्षेत्र में झाड़ी काटने तक की अनुमति वन विभाग को भी नहीं है और न ही लोग दतवन से लेकर पत्ता तक तोड़ सकते हैं। अध्यक्ष मुखलाल के अनुसार गांव में आने वाली कच्ची सड़क
ठीक रहे, इसके लिए लोग प्रत्येक वर्ष 20 दिसंबर से पर्यावरण मेला के पूर्व तक श्रमदान करते हैं। खुद सुलझाते हैं मामले गांव में कार्यरत वन सुरक्षा समिति सक्रिय है. अध्यक्ष मुखलाल राय के साथ समिति के पदेन सचिव फाॅरेस्टर मोहन सिंह व साथ में 25 सदस्य हैं। समिति को विशेष कार्य के लिए एक बार मुख्यमंत्री के हाथों 25 हजार, तो दूसरी बार प्रमंडल स्तर पर दो लाख रुपये का इनाम मिल चुका है. ग्राम चेतना समिति के बैनर तले प्रत्येक सप्ताह गुरुवार की रात में गांव के लोग वन विभाग के सहयोग से बने सामुदायिक भवन या चबूतरा पर बैठक करते हैं। लड़ाई झगड़ा सबका निपटारा यहीं होता है। गांव का कोई मामला थाना नहीं जाता।
पढाई में किसी से पीछे नहीं
सिमरकुंडी में आज खेतीबाड़ी से लेकर पढ़ाई का पूरा माहौल है। वर्ष 2007 में यहां कोई 10वीं पास नहीं था, पर आज यहां की लड़कियां इंटर पास है। उसकी तरह अन्य बच्चे भी सरकारी स्कूल के बाद पढ़ने के लिए गांव से बाहर जाने लगे हैं. यहां पहले एक कमरे में स्कूल संचालित हो रहा था, अब बड़े स्कूल में चार शिक्षक पढ़ाते हैं।
गांव में योजनाओं में भ्रष्टाचार वर्जित
गांव के सरकारी स्कूल पर ग्रामीणों ने ग्रामसभा से एक संदेश स्पष्ट रूप से लिखा रखा है। इस गांव में सभी सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार वर्जित है। सभी सरकारी पदाधिकारियों को सूचित किया जाता है कि इस गांव में क्रियान्वित योजनाओं में नियमानुसार पूरी पारदर्शिता के साथ काम करें। योजनाओं की पूरी जानकारी व प्राक्कलन ग्रामसभा को दें. ग्रामीणों की सहमति से ही योजनाओं का सृजन व क्रियान्वयन किया जायेगा। ऐसे समय में जब हर जगह भ्रष्टाचार का बोलबाला है तब यह गांव देश को एक नई राह दिखाता है।
साभार: प्रभात खबर
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