सारी छुट्टियां खत्म हो रही थी। पापा कहीं घुमाने न ले जाते। जून भी खत्म हो रहा था। कभी कोई काम कभी काम। बस जब देखो तब… अरे बेटा बाद में चले जायेंगे। क्या हुआ। राघव और दिव्यांश के मम्मी पापा तो हर बार बाहर घूमने जाते हैं। वंशिका भी अपनी नानी के घर जयपुर गई। शौर्य भी गया है। केशव व वासु भी चलेंगे वो तैयार हैं। चलो ना…। मैने पापा को अपना हॉलीडे होम वर्क भी दिखा दिया। फिर क्या था पापा तैयार हो गये लेकिन बोले दादी को भी रेडी करो। मेरी दादी मुझे बहुत प्यार करती हैं और मुझे छोड कर कहीं नहीं जातीं। वो भी तैयार हो गईं। बाबा जा नहीं सकते थे इसलिए रिंकू चाचा घर पर रुक गये।
बस प्लान बना हम लोग लखनऊ से निकल पडे कानपुर के लिए। सुबह सुबह हल्की हल्की बारिश हो रही थी। बहुत मजा आ रहा था। कार का शीशा खोल कर बूंदों को पकडने में मजा आ रहा था। बस इंतजार था कि कानपुर आ जाये बस। जैसे ही गंगा नदी दिखाई दीं वैसे ही पापा ने बताया कि अब कानपुर आने वाला है। और थोडी देर में कानपुर आ गये। केशव व वासु वहां पहले से ही इंतजार कर रहे थे। मैं और वासु क्लास 4 में और केशव 5 में है। मैं केशव और वासु फटाफट एक कार में बैठ गये। मैं न्यू वे स्कूल अलीगंज और वासु रानी लक्ष्मीबाई स्कूल इंदिरानगर में तथा केशव वीरेन्द्र स्वरूप स्कूल कानपुर में पढता है। उधर पापा दादी बुआ अमित चाचा राकेश चाचा और विजय भैया सब लोग एक जगह मिल गये। सब लोग चाय पीने लगे हम लोगों ने माजा पी। सुबह कुछ भी खाना अच्छा नहीं लगता। थोडी देर में हम लोग निकल पडे सफर में। मैं केशव व वासु और पापा एक कार में हो गये। रास्ते भर मस्ती। कहीं टॉफी तो कहीं नमकीन। बस कार भाग रही थी। दादी व दादी की सहेली की कार पीछे और सबसे पीछे बुआ फूफा की कार थी। केशव खूब झूठ बोल रहा था कह रहा था मैं तो चित्रकूट कई बार घूम आया हूं। कभी अंग्रेजी वाली मैम की नकल उतार रहा था। वासु अपने चाचा हिमांशु से डरता है इसलिए चाचा उसके साथ थे तो वो चुप था। वासु खाना को ठाना बोलता था। केशव उसकी हंसी उडा रहा था। पापा कहते हैं कि किसी की हंसी नहीं उडानी चाहिए। केशव बुआ का मोबाइल लाया था हम उस पर सारे रास्ते गेम खेलते रहे। अब खिडकी से दूर दूर तक पहाड नजर आने लगे थे। पापा ने बताया कि चित्रकूट आ गया युवी। मजा आ गया वैसे ही पहाड जो हम ड्राइंग में बनाते थे। कुछ ही देर में हम सब होटल पहुंच चुके थे। सब थक गये थे। हम लोग अभी नहीं थके थे। गर्मी बहुत लग रही थी। खूब बडे बडे पहाड देखने का मन कर रहा था। थोडी देर बाद सब लोगों का कहीं चलने का प्लान बना। हम सब निकल पडे घूमने। सब किसी बडे मंदिर पर मिले। दादी ने बताया कि सती अनुसुइया का मंदिर है। इसके बाद एक गुफा में गये वहां तो केशव डर गया। गया ही नहीं । दिन में भी घना अंधेरा था। पानी भी भरा था। एक जगह लिखा था गुप्त गोदावरी। इसके बाद थक गये और लौट आये होटल। दूसरे दिन जो मस्ती हुई बस पूछो मत। सुबह बहुत ऊंचे पर्वत पर गये। यहां हनुमान जी का मंदिर था। यहां बडा डर लग रहा था। खूब सारे काले मुंह वाले बंदर थे। सब लोग अपने हाथों से लडडू और चने खिला रहे थे। पापा ने मुझे कहा पर मैं डर गया। केशव बोला, डरपोक कहीं के बंदर से डरता है। इसके बाद पहाड से नीचे उतर कर सब लोग नीचे आ गये।
मंदाकिनी नदी का झरना जानकी कुंड था। बहुत डर लग रहा था। उसमें सब नहा रहे थे। केशव यहां खूब रंगबाजी दिखा रहा था। वासु अपने चाचा के साथ नहाने चला गया। सब डरा रहे थे। फिर पापा ने मुझे झरने में उतारा। पापा भी खूब नहा लिये। मैने फिर केशव को बताया बेट्टा मैं भी नहा रहा हूं। नहाने के बाद फिर घूमने चल दिये। रास्ते में एक बहुत बडा पर्वत देखा। सब लोग उस पर्वत को देखने चल दिये। दादी बोली यहां घूमने नहीं परिक्रमा करने आये हैं। यह कामदगिरी पहाड है खूब बडा सा। फिर बहुत रात तक इसकी परिक्रमा हुई। कहीं फ्रूटी तो कहीं आइसक्रीम खाई हमने केशव और वासु ने। इसके बाद हम लोग होटल आ गये। रात में सब सो गये लेकिन हम और वासु मोबाइल पर गेम खेलते रहे। सुबह की तैयारी में सब जुटे थे। सोमवार से स्कूल खुलने थे। जाना भी था। सुबह हुई जल्दी जल्दी सब तैयार हो गये। अपनी अपनी कार में बैठ गये। मैं पापा के साथ था। केशव और वासु भी थे। राकेश चाचा ने कहा सब लोग एक एक कहानी सुनाओ। पहले मैने सुनाई फिर केशव ने। वासु ने जैसे ही कुछ सुनाना शुरू किया हमें केशव को हंसी आ गई। फिर पापा ने खूब डांट लगाई कि किसी पर हसंते नहीं है। वासु ने 15 अगस्त पर अपने स्कूल में जो कविता सुनाई थी वहीं सुनाई। दोपहर तक कानपुर आ गया था। केशव कानपुर में बुआ के साथ उतर गया। मैं और वासु लखनऊ आ गये। शाम हो गई थी। पापा ने कहा चलो आराम करो आज कल अपना बस्ता लगा लेना। अब हो गई मौज मस्ती। सोमवार को स्कूल जाना है।